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महाकवि राकेश स्मृति पर्व का आयोजन

–प्रकृति और चिड़ियों से संवाद करते थे महाकवि राकेश : संजय पंकज
मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। “निराला, सुमित्रानंदन पंत, हजारी प्रसाद द्विवेदी, बनारसी दास चतुर्वेदी, राहुल सांकृत्यायन, बेनीपुरी, दिनकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, अज्ञेय जैसे श्रेष्ठ लेखकों के प्रिय कवि राम इकबाल सिंह राकेश का यौवन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे हिन्दी प्रांतों में युवक, सैनिक, मधुकर जैसी पत्रिकाओं के संपादन में व्यतीत हुआ तो जीवन का उत्तरार्द्ध गांव में निरंतर लिखते हुए गौरवपूर्ण बना। राकेश जी अपने लेखक मित्रों और संपादकों को खूब साहित्यिक, सांस्कृतिक पत्र लिखते थे। उन पत्रों की कॉपी अपने पास सुरक्षित भी रख लेते थे। उनके देश-विदेश से मंगाए गए विभिन्न विषयों के पुस्तक संग्रहों के बीच उन पत्रों को भी उनके आवास ‘पंचवटी’ और ‘गरुड़ नीड़’ में देखा जा सकता है। चट्टान, गांडीव, मेघदुन्दुभी, गंधज्वार, पदमारागा जैसी महत्वपूर्ण काव्य कृतियों के रचनाकार राकेश जी ने महाकाव्यात्मक गुणों से संपन्न कई लंबी कविताएं भी लिखीं जिसकी व्यापक चर्चा हुई। पद और पुरस्कार के लोभ मोह से परे राकेश जी श्रेष्ठ और समाज उपयोगी पढ़ने और लिखने में विश्वास करते थे।”
ये बातें आमगोला स्थित ‘शुभानंदी’  में महाकवि राम इकबाल सिंह राकेश स्मृति समिति एवं नवसंचेतन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित महाकवि राकेश स्मृति पर्व में विषय -प्रवर्तन करते हुए कवि-गीतकार, आलोचक और संपादक डॉ संजय पंकज ने कही। महाकवि राकेश के व्यक्तित्व कृतित्व पर विस्तार से बोलते हुए डॉ पंकज ने आगे कहा कि राकेश जी ग्रामीण चेतना और ग्राम्य अंचल के एक ऐसे दृष्टि संपन्न कवि, चिंतक थे जिन्होंने गांव की सामाजिकता, प्रकृति, नैतिकता और संस्कृति का बहुत ही संवेदनात्मक ढंग से स्पर्श किया है। वे चिड़ियों की भाषा और फसलों के उल्लास तथा दुख-दर्द को जानते समझते थे। राकेश जी की कविताओं में प्रकृति अपने विविध रूपों में दृष्टिगोचर होती है। राकेश जी भाषा सिद्ध, भाव संपन्न कवि थे लेकिन स्वाभिमानी और शुद्धता के ऐसे प्रेमी थे कि किसी के अशुद्ध बोलने तथा दंभी व्यवहार को तनिक भी बर्दाश्त नहीं करते थे और उसे दो टूक मुंह पर ही कह देते थे। भाषा पर उनकी मजबूत पकड़ थी। उनकी कृतियां पीढ़ियों को संस्कारित करने तथा उसके कवित्व को जागृत करने में पूर्णतः समर्थ हैं। अपने गांव भदई में रहकर उन्होंने गहरी साहित्य साधना की और हिंदी साहित्य भंडार को समृद्ध किया।
कवि- कथाकार डॉ रामेश्वर द्विवेदी ने कहा कि आज साहित्य साधकों का घोर अभाव है। ऐसे में राकेश जी जैसे दृढ़ संकल्पित साहित्य साधक का स्मरण बरबस हो आता है। उनकी रचनाएं मांत्रिक शक्ति से आलोकित हैं। कई कविताएं चित्रात्मक शैली में है जिन्हें पढ़ते हुए समय, परिवेश और विषय साफ-साफ उजागर होते हैं। गीतकार डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि राकेश ने जी राग रागिनियों में आबद्ध गीतों का सृजन भी खूब किया है। तत्सम शब्दावलियों का अनुपम प्रयोग उनकी कविताओं में हुआ है।
राकेश जी के जामाता ब्रजभूषण शर्मा भाव विह्वल शब्दों में कहते हैं कि उन्होंने अपनी अंतिम सांस मेरी छाती पर लेते हुए मुझसे वादा लिया था कि मेरी पुस्तकों और पांडुलिपियों की वे रक्षा करेंगे। लोक से जुड़ा हुआ सैकड़ों निबंध राकेश जी के अभी अप्रकाशित हैं। मैथिली लोकगीत जब छपी थी तो उसकी खूब चर्चा हुई थी आज वह भी अनुपलब्ध है। साहित्यकार डॉ हरिकिशोर प्रसाद सिंह ने कहा कि राकेश जी की कविताओं में लोक का व्यापक स्वरूप दिखलाई पड़ता है। वे जीवन संघर्ष के कवि थे। राकेश जी के जामाता ब्रजभूषण शर्मा ने संस्मरण के माध्यम से राकेश जी के व्यक्तित्व को चित्रित करते हुए कहा कि उनके साथ मैंने अनेक कवियों से संवाद किया था।  उनके बीच राकेश जी का बहुत सम्मान था। युवा कवि डॉ यशवंत ने कहा कि राकेश जी की कविताओं में शौर्य और पराक्रम के भाव तथा शिल्प में नवीनता है। युवा कवि सुधांशु राज ने कहा कि महाकवि राकेश की कविताएं हमें संस्कारित करती हैं। उनको पढ़ते हुए प्रेरणा मिलती है।
इस अवसर पर उद्गार व्यक्त करने वालों में मधु मंगल ठाकुर, मुकेश त्रिपाठी, राकेश कुमार, अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा, प्रमोद आजाद, चैतन्य चेतन, कृशानु आदि महत्वपूर्ण थे। स्मृति पर्व का शुभारंभ महाकवि के चित्र पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि के बाद उनके जामाता ब्रजभूषण शर्मा के स्वागत संबोधन से हुआ। ब्रजभूषण शर्मा ने कई संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वे बड़े स्वाभिमानी थे, किसी तरह का समझौता उन्हें स्वीकार नहीं था। डॉ संजय पंकज ने राकेश जी की कविता जब मैं बोला का ओजस्वी पाठ प्रस्तुत किया। दूसरे सत्र में उपस्थित कवियों ने विविध भावों की रचनाओं की सुंदर प्रस्तुति दी। धन्यवाद ज्ञापन प्रणय कुमार ने किया।

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