मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। आदिशक्ति के सातवें रूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है । नवरात्र की सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की उपासना का विधान है। ब्रह्म देव जी ने मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुरों से अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए योगनिद्रा में लीन श्री भगवान (विष्णु) को निंद्रा से चेतन करने का प्रयास किया अतः ब्रह्म देव ने श्री भगवान को योगनिद्रा से जगाने के लिए कालरात्रि मंत्र से देवी की स्तुति की थी।आचार्य सुजीत शास्त्री (मिठ्ठू बाबा)नेकहा कि पौराणिक मतानुसार देवी कालरात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा भी यही हैं। देवी कालरात्रि ने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है। कालरात्रि शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है इसका संधिविच्छेद है काल + रात्रि। काल का अर्थ है (कालिमा यां मृत्यु) रात्रि का अर्थ है निशा, रात और अस्त हो जाना। अतः कालरात्रि का अर्थ हुआ काली रात जैसा अथवा काल का अस्त होना। अतः देवी कालरात्रि का वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है।
शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकारी है, देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है। मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। देवी कालरात्रि का रंग काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है इनका वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है।