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समाधान उपन्यास का फलक बड़ा है।कई समानांतर कथाएं साथ चलती हैं। सामाजिक संकीर्णताओं पर लेखक ने बारीकी से किया है प्रहार: डॉ संजय पंकज

–कवि देवेन्द्र कुमार के उपन्यास समाधान का हुआ लोकार्पण
मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन मुजफ्फरपुर के तत्वावधान में कवि कथाकार देवेंद्र कुमार के उपन्यास ‘समाधान’ का लोकार्पण मिठनपुरा के एक होटल में करते हुए डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव ने कहा कि इस उपन्यास में समाज की जटिल समस्याओं को समाधान तक पहुंचाने का एक बड़ा ही उद्देश्य पूर्ण प्रयास लेखक ने किया है। बीज वक्तव्य मैं कवि- गीतकार, आलोचक डॉ संजय पंकज ने कहा कि इस उपन्यास का फलक बड़ा है और एक ही साथ कई कथाएं चलती हैं। समाज की संकीर्णताओओं पर उपन्यासकार में बहुत ही बारीक ढंग से प्रहार किया है। इतिहास, समाज और मानवीयता का सुंदर संयोजन इस उपन्यास में है। जटिल समस्याओं को समाधान तक पहुंचाने का एक भगीरथ संकल्प इस उपन्यास का प्राण तत्व है। आलोचक डॉ रामप्रवेश सिंह ने विस्तार से बोलते हुए कहा कि इस उपन्यास में देश, काल, परिस्थिति का निर्वहन बखूबी किया गया है। आज के समय को देखते हुए इसका समापन छायावादी ढंग से किया गया है जो उचित नहीं प्रतीत होता है। अंग्रेजी और  हिंदी के विद्वान कवि डॉ देवव्रत अकेला ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भूकंप की त्रासदी को लेखक ने प्रेमपूर्ण वातावरण में जिस तरह से चित्रित किया है वह आकर्षक और प्रभावशाली है। डॉ रामेश्वर द्विवेदी ने कहा कि हर लेखक चीजों को अपने ढंग से देखता और बेहतर ढंग से प्रस्तुत करता है आलोचकीय दृष्टि में भिन्नता है स्वाभाविक है। उपन्यास के आवरण चित्र बनाने वाले प्रसिद्ध चित्रकार डॉ विमल विश्वास ने कहा कि समाधान का हर रास्ता क्रांतिकारी होना चाहिए। संचालन के क्रम में डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि उपन्यास सरस और गंभीर हैं। इसके पात्र और संवाद दोनों प्रभावित करते हैं। उपन्यास के लेखक देवेंद्र कुमार ने कहा कि  स्त्रियों की आधी दुनिया पूरी दुनिया की धुरी होती है। जीवन को सहेजना, संभावना, पल्लवित पुष्पित कर एक बार फिर कड़ी को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी ईश्वर ने स्त्री को ही प्रदान किया है। यह उपन्यास स्त्री शक्ति को तथा उसके दायित्व को प्रतिपादित करने की दिशा में मेरी एक कोशिश है। डॉक्टर सुशांत ने कहा कि इस उपन्यास की रचनात्मकता कहीं न कहीं से रूढ़िग्रस्त समाज की मानसिकता को भी रेखांकित करती है। हमेशा स्त्री ही क्यों त्याग करे इसकी पहल कोई पुरुष क्यों नहीं करे?  आभार प्रकट करते हुए डॉ शीला वर्मा ने कहा कि मैं इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया को देखती रही हूं। लेखक की तल्लीनता की मैं गवाह हूं और आज इस लोकार्पण उत्सव में आप सब की उपस्थिति प्रेरक है। धन्यवाद ज्ञापन में आचार्य चंद्र किशोर पराशर ने कहा कि बहुत ही तैयारी और सूझबूझ के साथ लिखा गया यह उपन्यास है। इस अवसर पर कुमार विभूति, अंजनी कुमार पाठक, नर्मदेश्वर चौधरी, अभिषेक कुमार, हरि किशोर प्रसाद सिंह, आशा कुमारी, सविता राज ,अविनाश तिरंगा, डॉ शैल केजरीवाल, पंकज कुमार बसंत, उमेश राज, डॉ यशवंत प्रमोद नारायण मिश्र आदि शताधिक लोगों की गरिमामयी उपस्थिति रही।

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