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विश्व मानवता के उन्नायक थे विवेकानंद : डा. संजय पंकज

–स्वाभिमान की भाषा है हिन्दी:विमल कुमार परिमल
पटना (वरुण कुमार)। भारतीय संस्कृति के उन्नायक स्वामी विवेकानंद ने वैश्विक स्तर पर भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान के साथ ही अपने परम गुरु स्वामी रामकृष्ण के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के महाभाव को मानवता के प्रकर्ष पर पहुंचाया। वे महज भारत के ही नहीं, विश्व मानवता के भी उन्नायक हैं । शिकागो धर्म संसद में उनके शौर्यपूर्ण संवाद से विश्वगुरु भारत के मूल्यों की स्थापना हुई थी। उन्होंने कहा कि जितना मैं भारत का  हूं, उतना ही हर देश, धर्म और जाति का हूं । मेरे लिए हर धर्म पूजनीय है, लेकिन जिस भारत को लेकर मैं आया हूं, वह अपने आध्यात्मिक बोध और ज्ञानात्मक परंपरा के कारण वैज्ञानिकता के साथ श्रेष्ठ है उक्त बातें स्वामी विवेकानंद की जयंती की पूर्व संध्या पर प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय मसौढ़ी पटना में बीपीएससी द्वारा नवनियुक्त शिक्षको एवं वहां के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात वक्ता, कवि – साहित्यकार एवं वर्तमान में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के मंत्री डा संजय पंकज ने कही । आगे उन्होंने बताया कि  युवाओं से स्वामी विवेकानंद जी की बड़ी अपेक्षा थी और उनका विचार था कि युवा जीवन वही सार्थक है,  जिनकी क्रांतिधर्मिता से सामाजिक रास्ट्रीय और वैश्विक सकारात्मक परिवर्तन हो ।
मौके पर एससीईआरटी पटना के पूर्व निदेशक ए.के. पांड्या ने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि मैं ईश्वर के दर्शन प्रकृति और प्राणियों में करता हूं। मैं स्वतंत्रता का आग्रही हूं और यह आत्मा का संगीत है। सबका जीवन मूल्यवान और महत्वपूर्ण है और मनुष्य के भीतर जो असीम शक्ति है उसे अवधान के द्वारा ही जगा  सकते है। इस अवसर पर पूर्व राजभाषा अधिकारी एवं साहित्यकार विमल कुमार परिमल ने  हिंदी के सर्वांगीण विकास एवं उसके विश्व भाषा के रूप की विशद चर्चा की और कहा कि  समस्त भाषाओं का हमे सम्मान करना चाहिए पर हमारे स्वाभिमान की भाषा हिन्दी है और इसी भाषा पर स्वामी विवेकानंद जी भी बल देते थे। इस भाषा में ही अन्य क्रान्तिकारियों ने भी मनुष्यता का आत्मीय राग प्रस्तुत किया है।
पूर्व शिक्षिका डा कुमारी आशा ने शिक्षकों को श्रेष्ठ मानते हुए कहा कि हमें अपने आचरण से बच्चों को प्रेरित करते हुए सकारात्मक होना चाहिए। शिक्षा विभाग, पटना से आए हुए शिक्षाविद व निरीक्षक श्री संतोष कुमार ने कहा कि शिक्षक का दायित्व सबसे बड़ा है क्योंकि उन्हें सही अर्थों में मनुष्य का निर्माण करना होता है।
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथि वक्ताओं ,  प्राचार्य डा उपेन्द्र कुमार , ए.के. पांडया एवं महाविद्यालय के शैक्षणिक प्रमुख व सांस्कृतिक प्रभारी डा. सुधांशु कुमार के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। तदुपरांत प्राचार्य डॉ उपेन्द्र कुमार ने शाल व डायरी से एससीईआरटी के पूर्व निदेशक डा एके पांड्या को सम्मानित किया और डा. पांड्या ने डा. संजय पंकज, विमल कुमार परिमल एवं डा कुमारी आशा को शाल एवं डायरी देकर सम्मानित किया । कार्यक्रम के संचालन क्रम में महाविद्यालय के शैक्षणिक प्रमुख व व्यंग्यकार डा सुधांशु कुमार ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जितने बड़े दार्शनिक थे , उतने ही बडे वक्ता और शिक्षक भी थे। वह  सिमुलतला में स्वास्थ्य लाभ हेतु 1887 एवं 1889 में क्रमशः पन्द्रह और पैंतालीस दिनों  प्रवास के क्रम में बच्चों कों भी मुफ्त में पढाते थे ।
कार्यक्रम के समापन में महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ उपेन्द्र कुमार ने सबके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि एक शिक्षा ही एकमात्र ऐसा साधन है जिससे समाज और राष्ट्र का उद्धार किया जा सकता है। इस अवसर पर व्याख्याता शशिबाला कुमारी, मिनाक्षी कुमारी, सीमा कुमारी, रानी कुमारी सहित अतिथि व्याख्याता राजपत सिंह यादव के साथ ही महाविद्यालय के सभी कर्मी भी मौजूद थे।

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