मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। देवि भागवत मे कहा गया है-
कुमारी भोजने नात्र तथा देवी प्रसीदति।
अत्र नवरात्रे प्रक्षाल्य पादौ सर्वासां कुमारीणां।।
च वासव सुलिप्ते भूतले रम्ये तत्रसा आस स्थिताः।पूजयेद् गंध पुष्पैश्च स्रम्भिश्चापि मनोरमैः।।
पूजयित्वा विधानेन भोजनं तासु दापयेत्।।
भगवति किसी पूजा उपासना से प्रसन्न नहीं होती जितनी कि कुमारी पूजन से।आचार्य सुजीत शास्त्री (मिठ्ठू बाबा) ने कहा कि नवरात्रि में विशेष रुप से कुमारी पूजन करना चाहिए। गन्ध, पुष्प,चन्दन,आसन आदि उपकरणों से उनकी विधिवत् पूजन कर के भोजन कराना चाहिए। कुमारी पुजन से पूर्व यजमान की शारीरिक मानसिक शुद्धता पर बहुत अधिक बल दिया है-
सुविताने शुभे स्थाने पंकजो परिपीठके।उपवेश्य कुमारी हाँ सर्वांग न्यायोत्समचरेत्॥
यजमान अपने अंगों का न्यास आदि करके कन्या पुजन करे। कुमारी कन्यायें देवी की सत्ता साकार होने के कारण हर जाति की कन्या पूज्य है-
तस्माच्च पूजयेद्वालां सर्व जाति समुद्भवाम्।जाति भेदो न कर्त्तव्यः कुमारी पूजने शिवे।।
सभी जाति की कुमारियों का पूजन करना चाहिए,क्योंकि कुमारी की पूजा में जाति-भेद निषेध है।
देवी बुद्धया महाभक्त्या तस्मातां परिपूजयेजत।सर्व विद्या स्वरूप हि कुमारी नात्र संशयः॥
भक्ति भाव से और देवी में बुद्धि करके कुमारियों की पूजा करें।वे सर्व विद्या रूपिणी हैं,इसमें संशय नहीं है।
कुमारी पूज्यते यत्र स देषः क्षिति पावनः।महपुण्य तमो भूयात्समन्तात्क्रोश पंचक्रम्।।
जहाँ कन्या की पूजा होती है,वह स्थान पृथ्वी में पवित्र है। पाँच कोश तक उसमें अपवित्रता नहीं रहती। दो वर्ष से दश वर्ष तक की नव कन्या और एक बटुक का पुजन कर भोजन कराकर यथोचित दक्षिणा देकर आशीर्वाद लेना चाहिए। ध्यान रहे कन्या भोजन मे नमक न हो, मिष्ठान्न का भोजन उत्तम फलदाई होता है।