खबरें बिहार

संजय पंकज के सम्मान में हुई कवि गोष्ठी : जुटे ग्वालियर के साहित्यकार

–मेरे सृजन के प्रेरक तत्व परंपरा में हैं तो आत्मिक भाव पूर्वजों से प्राप्त करता हूं:  संजय पंकज
–‘जिसमें सबका नहीं छलकना वह अपना संसार नहीं’ मुक्तक सुनाकर दिया अपना परिचय
ग्वालियर (मध्यप्रदेश)। गीत-नवगीत के चर्चित रचनाकार मुजफ्फरपुर , बिहार से पधारे डॉ संजय पंकज के सम्मान में बलवंत नगर के गीतेश निवास में डॉ कृष्ण मुरारी शर्मा की अध्यक्षता में एक कविगोष्ठी का आयोजन किया गया। वरिष्ठ कवि मुरारी लाल गुप्त गीतेश ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि संजय पंकज की रचनाओं में समृद्ध परंपरा और समकालीनता के सहज प्रवाह को देखा जा सकता है। डॉ पंकज मूल्य और मनुष्यता के कवि हैं। प्रकृति, प्रेम और भारतीयता के उदात्त दर्शन इनकी रचनाओं में मिलते हैं। सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पण तथा दीप प्रज्वलन के बाद संजय पंकज ने कबीराना अंदाज का गीत सुनाया – चुप हो जा चुप हो जा साधो, कब तक बोलेगा! धरा गगन के बीच अडिग तू, कब तक डोलेगा!  तो पूरे वातावरण में मस्ती और अध्यात्मक की खुशबू तैर गई। अपने मुक्तक –  मोल भाव का अपना कोई कभी रहा बाजार नहीं, जिसमें सबका नहीं छलकना वह अपना संसार नहीं, जिस धारा में सबका बहना सदा रहा है जीवन भर, उस धारा में मैंने बहना कभी किया स्वीकार नहीं – सुनाकर अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दिया। कवि पंकज ने अपनी कई रचनाओं की सुमधुर प्रस्तुति और प्रभावशाली पाठ से सबको विमुग्ध किया और अंत में जब – जर्जर कश्ती आंधी पानी, टूटी है पतवार/ जाना है किस ओर कहां पर, भूला खेवनहार/ कौन उतारे पार? – सुनाया तो जीवन-सच का रागात्मक भाव उजागर हुआ। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ कृष्ण मुरारी शर्मा ने कहा कि संजय पंकज गीत, कविता, आलोचना और संपादन में अपनी पहचान रखते हैं। इनके गीत हृदय को छूते हैं। डॉ शर्मा ने अपने मुक्तक – कहें तो सहज ही कहिए सब समझेंगे, अटपटा कहेंगे तो बस खुद समझेंगे, यह जीवन भी सहजता से जिएं सुख से, अन्यथा न घर के न घाट के रहेंगे – से जीवन की सरलता को प्रकट किया। बृजेश चंद्र श्रीवास्तव ने – आ जाओ सावन बादल पानी और फुहार – गीत सुना कर बरसात का आह्वान किया। मुरारी लाल गुप्त गीतेश की पंक्तियां – जानकर अनजान बनना सीख कर अब मैं चला हूं, मैं न दुख से अब डरूंगा क्योंकि दुख में ही पला हूं – स्वाभिमान और जीवट को जगाने वाली रही। राजेश शर्मा ने – हे सुवासित वायु मेरी पीर को छूकर जाना, एक मरणासन्न संवेदन है किसी का अभी – गीत सुना कर वातावरण को संवेदित कर दिया। डॉ ललित मोहन त्रिवेदी ने – दीया लेकर भरी बरसात में उस पार जाना है, उधर पानी इधर आग दोनों को निभाना है – सुनाकर जीवन के संतुलन का बोध कराया। सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा का दोहा – चौमासे की जिंदगी, कजरी कहीं मल्हार! कभी सनी गोधूलि में, कभी बहे जलधार! – जीवन के सुख-दुख से रूबरू कराता रहा। विजय शंकर श्रीवास्तव के गीत –  जिंदगी प्यार का गीत गाने लगी, जबकि अंतस नवजागरण हो गया – जिजीविषा जगा कर गूंजते रहे। रामचरण चिराड़ रुचिर ने – एक तरफ तो खाई है गहरी दूजी और कुआं है/ जीवन के पथरीले पथ पर चलना कठिन हुआ है – सुना कर जीवन के द्वंद्वात्मक संघर्ष से परिचित कराया। जगदीश गुप्त ने अपने मस्ती भरे गीत – जागरण के गीत गाता फिर रहा हूं, मैं मसानों को जगाता फिर रहा हूं – से वातावरण को गुंजायमान कर दिया। डॉ मंजुलता आर्य ने भक्ति भाव के गीत – माते मुझको ज्ञान दो, बुद्धि का वरदान दो – सुना कर कवि गोष्ठी को मां सरस्वती के चरणों में समर्पित कर दिया। आभार प्रकट करते हुए संजय पंकज ने कहा कि ग्वालियर की भूमि शौर्य, पराक्रम और ऐतिहासिक गाथाओं से भरी हुई है। यहां साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म की समृद्ध परंपरा है। यह ऋषियों, साधकों और साहित्यकारों की धरती है। मैं इसे प्रणाम करता हूं। यह कवि गोष्ठी मेरे लिए प्रेरणा है और मैं अपने सृजन कर्म को राष्ट्रीय गौरव से संपन्न करते हुए विश्व बंधुत्व के लिए हमेशा अर्पित करूंगा। संचालन रामचरण चिराड़ रुचिर ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रदीप गुप्ता ने किया। चार घंटे तक चली इस आत्मीय कवि गोष्ठी में विविध भावों की रचनाएं प्रस्तुत की गईं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *