मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। छठ पर्व या छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। छठ पूजा के पीछे वैज्ञानिक आधार छिपा हुआ है। दसअसल षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय घटना है। उक्त बातें खबड़ा स्थित डीएवी स्कूल के विज्ञान के शिक्षक रमण कुमार मिश्रा ने कही।
इस समय सूर्य की पराबैगनीं किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। इसके कुप्रभावों से मानव की रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। इस पर्व के अनुसार सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा करता है।
पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिल सकता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनीं किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है।
वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे सबसे पहले आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है।
पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैगनीं किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है।
अत: सामान्य अवस्थामें मनुष्योंपर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ ही होता है।
छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखाके दोनों छोरों पर) सूर्यकी पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतहसे परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं।
वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरांत आती है।
ज्योतिषीय गणनापर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।