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प्रो वकील सिंह नहीं रहे

–25 मई को अपराह्न 3.20 बजे नंदविहार कॉलोनी स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली – बताया पौत्र मृदुल कांत ने
मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। महाप्राण निराला, मन आंगन के पार, चंपारण जिले की बोली, सियासत, बावरे नयन, मन विहग, और कुछ, जायसी कोश, महाकवि तुलसीदास, आखरी बयान, अनमिल आखर, जीर्ण वसन, कल्पना कला, अमृत ध्वनि, रोज नामचा, वंशस्थ वन वैभव, विखंडक बाढ़, विविध प्रिया, करील का पौधा, पुनरावर्तन – जैसी 50 से अधिक पुस्तकों के कीर्तिमान साहित्यकार प्रोफेसर वकील सिंह ने लंगट सिंह महाविद्यालय के हिंदी प्राध्यापक के रूप में कार्य करते हुए अवकाश प्राप्त किया। पूर्वी चंपारण जिले के मदन सिरसिया गांव में 7 नवंबर 1935 को इनका जन्म हुआ। विगत 1 माह से वार्धक्य के कारण अशक्त हुए और स्वास्थ्य तेजी गिरना शुरू हुआ। शैक्षणिक जगत और साहित्यिक- समाज में उनकी मृत्यु का समाचार सुनते ही शोक की लहर दौड़ उठी। साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने बताया कि प्रोफेसर वकील सिंह सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी थे। वह अपनी पढ़ाने की शैली के कारण छात्रों के बीच में लोकप्रिय थे। उन्होंने छंदोबद्ध कई पुस्तकों का सृजन किया। बोली, भाषा, छंद और अलंकार में उनकी गहरी रुचि थी। इसकी उन्होंने लंबी साधना की। वह शोध कार्य भी पूरी तल्लीनता और गंभीरता से करते थे। शांतिप्रिय प्रोफेसर वकील सिंह की प्राचीन साहित्य में गहरी अभिरुचि थी। डॉ महेंद्र मधुकर ने भाव विह्वल स्वर में कहा कि डॉ वकील सिंह मेरे बड़े अच्छे मित्र थे उनके निधन से मैं मर्माहत हूं। वे विद्वान प्राध्यापक थे। डॉक्टर इंदु सिन्हा ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि प्रो वकील सिंह मेरे सहकर्मी थे। वह बड़े मधुर और व्यवहार कुशल थे। शोक व्यक्त करने वालों में शोक व्यक्त करने वालों में कुमार राहुल, एचएल गुप्ता, डॉ यशवंत, अविनाश तिरंगा, डॉ अरविन्द कुमार, प्रेमरंजन, प्रमोद आजाद आदि शामिल हैं।

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