मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। उन्मुक्त अभिरुचि के कविता- पाठकों ने संजय पंकज के कवि- व्यक्तित्व का कवि-बिंब बनने में योगदान किया है कविता के श्रोताओं से, हिंदीभाषी क्षेत्रों में प्राय: सर्वत्र इस कवि को अभिभूतकारी होने की स्वीकृति मिली है। अपनी कविताओं में सामयिक क्रमिकता की भंगिमाएं उरेहते और कविता के मूलभूत निजी आस्वाद की मुहर उकेरते इस कवि ने दासियों तरह की कविताएं अपनी निश्चित सोच समझ और खुली संवेदना के सोपानों पर प्रभावकारी शैली में रची है। बहुप्रशंसित इस कवि ने नव प्रगतिशील जनवादी कविता के दौर में बीसवीं सदी के आठवें दशक में ही रचनारंभ किया और विधा पर गिरफ्त बनाने में धैर्य से काम लिया। इनको आवर्ती कविता (रेकरेंट पोएट्री) के प्रसंग में सर्वाधिक विचारणीय माना जाता है।
* राजेंद्र प्रसाद सिंह
संजय पंकज ने कविता के लिए अपना चमकता हुआ कैरियर छोड़ दिया। संजय एक अच्छे वक्ता भी हैं। वह चाहते तो कम से कम किसी महाविद्यालय में हिंदी के एक प्रभावशाली शिक्षक आचार्य हो सकते थे। पर नहीं, उन्हें तो सब समय कविता की चिंता रहती है। संजय कला के व्यापक क्षेत्रों में विचरण करते हैं। संगीत हो या नाटक, कवि सम्मेलन हो या विचार गोष्ठी, किसी का जन्मदिन मनाया जा रहा हो या समाज के विकास और उत्थान के लिए रचनात्मक गतिविधि संचालित करनी हो, विकल्प का खुला अवकाश संजय पंकज के पास है। कोई भूखा नंगा हो, किसी पर कोई अत्याचार कर रहा हो, कोई भूला हो-भटका हो बिना किसी भेदभाव के सबकी मदद करने का जज्बा संजय पंकज के पास सदैव रहता है। संजय पंकज तमाम कवियों में भी विशिष्ट इस अर्थ में है कि उनकी कविताओं से प्रेम करने वाले बड़ी संख्या में हैं, राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं उनके व्यक्तित्व में भी काफी कुछ ऐसा है, जो कविता के बाहर की दुनिया को भी सहज ही आकर्षित कर लेता है। आज के राजनीतिक-सामाजिक विघटन के दौर में एक कवि-व्यक्तित्व के प्रति समाज का ऐसा स्नेह-भाव विलक्षण है। निश्चय ही इसकी वजह मनुष्य और कवि के रूप में संजय पंकज द्वारा की गई साधना है।
* डॉ रेवती रमण
संजय पंकज वाल्ट व्हिटमैन की तरह दिक्काल तथा धरती से जुड़े हैं। इनकी कविताओं का विस्तार दिग्दिगंत तक है। सरस्वती की महती कृपा के कारण इनकी वाग्धारा अनेकमुखी है – कहीं गीतों के रूप में फूटी है तो कहीं कविताओं के रूप में। कहीं वह मंगल आशा का मांगलिक वितान तानती है तो कहीं आर्थिक दूरी के चारों ओर घूमती सभ्यता के दर्शन कराती है। सामाजिक सरोकार के कवि संजय पंकज अपनी समर्थ ऊर्जा से मानव मूल्यों का, समरस संस्कृति का सुंदर श्रृंगार करते हैं। इनकी रचनाओं का वैविध्य विषयगत नवीनता की प्रस्तुति करता है। जीवन के यथार्थ को उपस्थित करती इनकी कृतियां मानव मूल्यों की विलक्षण धरती प्रस्तुत करती हैं। संजय पंकज वस्तुतः साहित्यिक, सांस्कृतिक परिदृश्य पर जाज्वल्यमान एक ऐसा नाम है जो सहज संवेद्य गीतों की श्रृंखला लेकर हिंदी साहित्य और कला-संस्कृति के क्षेत्र में अपना आलोक विकीर्ण कर रहा है।
* डॉ इन्दु सिन्हा
संजय पंकज की कविताओं पर विचार करें तो इनकी निरंतर गतिशील रचना-यात्रा हमें उन पड़ावों पर ले जाती हैं जहां से इनकी कविता अगले वसंत की ओर अभिमुख होती है। इसलिए कविता के अब तक के बने प्रतिमानों से अलग संजय पंकज की कविता नए प्रतिमान की अपेक्षा करती हैं। सहज मुक्त स्वभाव की इनकी कविताओं के भी अनेक रूप और रंग हैं। ये रंग और रूप संजय पंकज की कविता के आभूषण हैं। स्मृतियों में आकंठ डूबकर और उनका निर्माण अतिक्रमण कर इन्होंने कविता रची है।
* डॉ शांति सुमन
‘ संजय ‘ का संबंध ‘महाभारत’ से है और ‘पंकज’ हमारी जातीय चेतना में सौंदर्य के प्रतिमान की तरह प्रतिष्ठित है। जीवन के संघर्ष और उसकी कोमलता को एक साथ उदाहृत करने वाला यह कवि संजय पंकज अपने नाम एवं उपनाम दोनों की सार्थकता को मूर्त करता है।
* डॉ प्रमोद कुमार सिंह
संजय पंकज ने काव्य की लगभग सभी विधाओं में रचनाएं दी हैं। इनकी समग्र काव्यात्मकता में ग्रामीण सौंदर्य की महक फैली हुई है। कई बार तो ऐसा लगता है कि ग्रामीण संस्कृति ही इनकी रचनात्मकता का ऊर्जा-केंद्र है। इनकी दृष्टि सकारात्मक है। प्रतिकूल के बीच अनुकूल बनने और बनाने की इनकी काव्य- प्रवृत्ति इनकी एक अलग विशिष्ट पहचान बनाती है।
* राजेंद्र सिन्हा
संजय पंकज का व्यक्तित्व बहुआयामी है, कृतित्व बहुविधात्मक। संजय मूलतः कवि गीतकार हैं – कविर्मनीषी…. और कई जन्मों का भी यदि एक जीवन हो जाए तो वह भी एक कविर्मनीषी के लिए पर्याप्त नहीं होता, उसमें भी संजय पंकज कवि होने के साथ-साथ संस्कृतिधर्मी भी हैं, समाजसेवी भी, धर्मानुरागी भी, राष्ट्रधर्मी भी, विचारधारा और सिद्धांत के लिए प्रतिबंध ही नहीं कटिबद्ध भी। संजय पंकज कविता करते हैं, कला भी, थिएटर भी, समीक्षा भी, पत्रकारिता भी किंतु काव्य सर्जना तथा काव्यालोचन उनका प्रमुख धर्म है, मुख्य साधना तथा जनसामान्य तक साहित्य का संप्रेषण सर्वप्रमुख सेवा।
* डॉ शिवदास पांडेय
संजय पंकज की लोकप्रियता ने औरों की तरह मुझे भी प्रभावित किया है। वह पहाड़ की तरह किसी सुनिश्चित दूरी पर खड़े और निर्विकार खड़े रहने की अपेक्षा हवा की तरह शीतल स्पर्श देते हुए बड़ी सहृदयता के साथ लोगों के दिल को गुदगुदाते हुए, आगे बढ़ते रहे हैं। पंकज सूरज बनते शब्द-संस्कार के सजग और प्राणवान कवि हैं। एक कवि के शील और उसकी नैसर्गिक ऊर्जा ने उन्हें प्राणवान बनाया है। संजय पंकज में कविता को सदैव वर्तमान बनाए रखने की अकूत क्षमता है।
* डॉ रामप्रवेश सिंह
संजय पंकज समकालीन गीत, कविता के समर्थ रचनाकार हैं। मुक्तछंद की कविताएं हों या गीत दोनों के सृजन में ये समाभ्यस्त हैं। एक संवेदनशील कवि गीतकार होने के साथ ही ये लगनशील सामाजिक सांस्कृतिक कार्यकर्ता भी हैं। इसीलिए इनकी कविताई के सामाजिक सांस्कृतिक सरोकार कथनी मात्र नहीं लगते, इनमें अनुभव-यथार्थ का बाल- विश्वास गुंफित लगता है गीतों में इन्होंने भोगे हुए यथार्थ की सरल तरल अभिव्यक्ति दी है। स्वयं के सुख-दुख को समष्टि के सुख-दुख से संयुक्त कर लेने की कला में ये निपुण हैं।
* डॉ रवीन्द्र उपाध्याय
संजय पंकज ने अधिकतर गीत लिखे हैं और एक गीतकार के रूप में इनकी ख्याति भी है लेकिन इन्होंने मुक्तछंद की कविताएं भी लिखी हैं जो यवनिका उठने तक तथा सोच सकते हो में संग्रहित हैं। इनकी कविताएं बहुत सरल सहज और आसानी से पाठक के भीतर संप्रेषित होने वाली हैं। संजय पंकज कवि होने के साथ-साथ हमारे शहर की साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों की चलती-फिरती संस्था भी हैं। संजय पंकज एक ऐसे कवि हैं जिनके सामाजिक सरोकार बहुत गहरे हैं। अगर हम विचारधारा की बात करें तो इनकी विचारधारा मानवीय संवेदना, करुणा और मनुष्यता है, जो दुनिया के किसी भी कवि और कलाकार की होती है। अपनी परंपरा, गौरव और भारतीय संस्कृति से इन्हें बहुत स्नेह है पर कट्टरता नहीं। यह लचीलापन ही है जो इनके व्यक्तित्व को खास बनाता है।
* डॉ रश्मिरेखा
मैंने संजय पंकज के जीवन के रचनात्मक फलक पर उन अनेक आड़ी तिरछी रेखाओं में बने चित्र को भी पढ़ने का प्रयत्न किया है, जो उनकी साहित्यिकधर्मिता से पृथक है और उसका आयाम भी वृहत्तर है। मैं नहीं जानता कि स्वयं पंकज जी को यह अनुभव है अथवा नहीं, किंतु मुझे है क्योंकि उनकी वेदना और आस्था मानवीय अस्तित्व की जड़ों को इस तरह सींचती है जैसे पत्थर को सावन की रिमझिम फुहार हरियल करती हैं। वह एक ऐसे सौम्य साहित्यकार हैं जो समाज और समाजवादी प्रवृत्ति को निरंतर सींचते प्रतीत होते हैं यह इसलिए कि समाज उनकी साधना-भूमि है। इस एहसास को आस्था की पृष्ठभूमि भी कही जा सकती है।
* डॉ अनिल कुमार
अपनी प्रशंसा का अपना परचम लहराना संजय पंकज की पहचान नहीं है। अनुभव से पोर पोर भरा व्यक्तित्व है डॉ संजय पंकज का। अपनी वाणी की मिठास और मृदुल व्यवहार के कारण इनका सामाजिक सरोकार भी उन्नत रहा है। जाति-धर्म और संप्रदाय की दीवारें कभी बाधक नहीं बनीं, इनके सहज-तरल प्रवाह में। प्रतिकूलता और अनुकूलता के बीच सदैव अपने स्व को इन्होंने बचाए रखा। किसी प्रलोभन के जाल में फंसने की इनकी विवशता नहीं रही। मंच पर सम्मानित होते रहे, लोकप्रियता की चकाचौंध में अंधेपन के शिकार नहीं हुए। बौद्धिक संजाल से मुक्त शाश्वत भावना-प्रवाह के अन्यतम गीतकार के रूप में संजय पंकज सदैव अभिनंदन और स्वागत के योग्य हैं।
डॉ विजय शंकर मिश्र
हिन्दी साहित्य में एक विलक्षण व्यक्तित्व का नाम डा संजय पंकज है। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजन करते हुए संजय पंकज मूलतः कवि ही हैं। ये कविता जीते हैं फिर कविता रचते हैं। इनकी कविताओं में स्वामी विवेकानंद का आह्वान है, कवीन्द्र रवींद्र का आकाश है और आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का आशीर्वाद है। जीवन के सभी संदर्भों पर एक मौलिक चिंतन है। इनकी कविताओं में मानवीय संवेदना का अनुभवजन्य अभिव्यक्ति है। छंदोबद्ध कविता और गीत के रचयिता होते हुए भी मुक्तछंद की दर्जनों कविताएँ श्रोताओं, पाठकों के जुबान पर चढी रहती है। वैसे यति, गति, लय, राग के असाधारण कवि हैं डा संजय पंकज।
विमल कुमार परिमल
डाॅक्टर संजय पंकज समकालीन हिंदी- साहित्य के श्रेष्ठ साधक हैं! सुकवि, समर्थ संपादक और प्रखर साहित्य- नेता के रूप में ख्यात डाॅक्टर पंकज ने अपनी विलक्षण प्रतिभा, गहरी निष्ठा और अनवरत साधना से अपनी अलग पहचान और सम्मोहक छवि बनाई है।
इनकी साहित्य-सर्जना जितनी दीप्त है, उतना ही प्रखर है इनका व्यक्तित्व! यह शब्द- शिल्पी ही नहीं,नई पीढ़ी के मार्ग-दर्शक भी हैं! साहित्यिक गतिविधियों के संचालन और प्रसार में इनकी ऐतिहासिक भूमिका है! इनका कृतित्व कालजयी हो और व्यक्तित्व अमर – इन्हीं शुभकामनाओं के साथ इस प्रातिभ पुरुष का अभिनंदन।
सतीश कुमार राय