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शिव शक्ति की संयुक्ति का महाभाव है वसंत: संजय पंकज

–चर्चा वसंत गोष्ठी का हुआ आयोजन
मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। ”  वसंत ऊर्जा और ताजगी के साथ आता है। यह केवल ऋतु परिवर्तन नहीं है बल्कि इसका आध्यात्मिक संदेश है। इस ऋतु में रंग, गंध और रस के वातावरण में मनुष्य की चेतना जागृत होती है। यौवन के उल्लास से भरा वसंत आध्यात्मिक भाव को संचारित करता है।”- ये बातें चमरुआ स्थित ऑक्सफोर्ड पब्लिक स्कूल परिसर में ‘चर्चा वसंत’ गोष्ठी में बोलते हुए मुख्य अतिथि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के अवकाश प्राप्त राजभाषा अधिकारी विमल कुमार परिमल ने कही।  विमल परिमल ने वसंत पर विस्तार से बोलते हुए आगे कहा कि वैदिक ऋचाओं में भी वसंत और मधुमास का आह्वान है और बार-बार मधु की चर्चा है। यह मधु केवल मादकता नहीं, नवजीवन का वैभव है। इस ऋतु में रचनात्मक तीव्रता आ जाती है।  मुख्यवक्ता के रूप में साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने वसंत पर केंद्रित कविताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि शायद ही कोई कवि हो जिन्होंने वसंत पर रचनाएं नहीं की हैं। वसंत के दुलारे कवि निराला का जन्म  वसंत पंचमी के दिन ही हुआ तभी तो वे लिखते हैं – सखि वसंत आया, भरा हर्ष वन के मन,  नवोउत्कर्ष छाया। वसंत के आते ही पूरा परिवेश संगीतमय हो जाता है। प्रकृति नई दुल्हन की तरह सज जाती है। वसंत राग-अनुराग का विस्तार है। शिव ने इसी परिप्रेक्ष्य में शक्ति का वरण किया। शिव शक्ति की संयुक्ति का महाभाव है वसंत। डॉ पंकज ने आगे कहा कि धरती और आकाश के मध्य जो स्पंदन होता है उसे आत्मसात करके मनुष्य जब  चेतना के शिखर पर ध्यानस्थ होता है तो वसंत साकार होकर अनुभूत होता है। प्रकृति का आनंद राग है वसंत। संस्कृति कर्मी डॉ आशा कुमारी ने लोक गीतों में वसंत का उल्लेख किया और कहा कि माधुर्य भाव के भक्त कवि मोदलता जी के अनेक पद राम और सीता के संदर्भ में वासंतिक सुषमा को अभिव्यक्त करता है। शिक्षाविद अखिलेश चंद्र राय ने कहा कि यह ऋतु सबके लिए उत्प्रेरक है। चर्चा वसंत में नंदकिशोर निराला, सुधांशु राज, राकेश कुमार सिंह, डॉ केशव किशोर कनक, वीरेंद्र कुमार वीरेन, विभु कुमारी, निर्मला श्रीवास्तव, संतोष,चैतन्य चेतन, विपिन कुमार, आलोक श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। फूलों का गुलदस्ता देखकर स्वागत करते हुए बिहार गुरु और मिशन भारती के अध्यक्ष अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा ने कहा कि आप सब वसंत जैसे ही मुस्कुराते और खिलखिलाते रहें। संजय पंकज के गीत ‘रंगों के दिन, गंधों के दिन, यौवन के अनुबंधों के दिन आ गए -‘ से आयोजन ने पूर्णत्व को प्राप्त किया।

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