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खुदीराम बोस का पराक्रम और शौर्य अतुलनीय है : संजय पंकज

–शौर्य दिवस पर हुआ संवाद और कवि गोष्ठी
–खुदीराम बोस स्मारक का स्थल पर जुटे साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी
मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। “अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध खुदीराम बोस ने आज ही के दिन जो बम धमाका किया था उससे हुकूमत की नींव हिल गई। इस बम विस्फोट के समर्थन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने केसरी में एक लेख लिखा जिस कारण उन पर मुकदमा चलाया गया और माफी मांगने के लिए कहा गया जिसे नकारते हुए उन्होंने कहा कि मैं खुदीराम बोस के इस शौर्य और पराक्रम का पूरा समर्थन करता हूं। इसके समर्थन में पुनः केसरी में दूसरा लेख प्रकाशित हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 6 वर्षों की कालापानी सजा दी और मांडले जेल में डाल दिया। वहीं 6 वर्षों के कारावास काल में गीता रहस्य जैसा महान कर्मवादी  ग्रंथ का तिलक ने सृजन किया।”- यह बातें खुदीराम बोस स्मारक स्थल पर शौर्य दिवस को नमन करते हुए कवि साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने कही। शौर्य दिवस पर विस्तार से बोलते हुए डॉ पंकज ने आगे कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हम अपने उन महान बलिदानियों का स्मरण करते हैं जिनके त्याग और संघर्ष से आज हम स्वतंत्र हैं। खुदीराम बोस ने जिस पराक्रम का परिचय दिया वह कोई सामान्य बात नहीं है। भारत माता के लिए अटूट श्रद्धा और आस्था तथा स्वतंत्रता की प्रबल इच्छा से ही किशोर खुदीराम ने यह जज्बा दिखलाया। भारत के ऐसे ही सच्चे सपूत से भारत माता का मस्तक पूरे संसार में ऊंचा है। अपने अध्यक्षीय उद्गार में डॉ ब्रजभूषण मिश्र ने कहा कि भारत ज्ञान, त्याग और तपस्या की धरती है। हमारे पूर्वज स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों का जुल्म सहते हुए उसका विरोध किया और अंततः आजादी हासिल की। खुदीराम बोस अमर हैं और हमें उन पर गर्व है। ओजस्वी स्वर में काव्य पाठ करते हुए लता सिन्हा ज्योतिर्मय ने जब यह पंक्ति पढ़ी –  बड़ी थी ललक करूं देश की सेवा निरंतर हो लगन, एक सैन्य पुत्री होकर भी थामा है शस्त्रों में कलम – तो लेखनी की राष्ट्रीयता उजागर हुई।
 डॉ सरोज कुमार वर्मा की गजल का शेर – देखो न भुला देना ए रस्म बगावत की, रातों के अंधेरे में ये भोर के तारे हैं- देर तक गूंजता रहा। डॉ ब्रजभूषण मिश्र ने भोजपुरी में दो गीत सुनाए। संजय पंकज ने दो गीत सुनाकर सब में ऊर्जा का संचार किया। आओ मिलजुल साथ चलें हम, जीवन आसान करें – प्रेरणा गीत का रंग खूब जमा। अंजनी कुमार पाठक ने – आज मुश्किल में है मेरा प्यारा वतन, उमेश राज ने – चूम लें आज इस मिट्टी को हम, आलोक कुमार अभिषेक ने – सन सत्तावन का ग़दर क्रांति का प्रथम तारा था, आजादी मिली जिस क्रांति से वह भारत छोड़ो नारा था- सुना कर लोगों की तालियां बटोरी। नर्मदेश्वर चौधरी, ओम प्रकाश गुप्ता, अशोक भारती, संतोष कुमार ने अपनी राष्ट्रीय कविताओं से सबको प्रभावित किया। अरुण शुक्ला था अविनाश तिरंगा उर्फ ने अपने भावपूर्ण उदगार से खुदीराम को श्रद्धांजलि दी। मोहन प्रसाद ने स्वागत संबोधन, संजय पंकज ने संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन रंगीश ठाकुर ने किया।

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