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अंतश्चेतना में उड़ान भरने वाले आलोक के गायक हैं रवींद्र और जानकीवल्लभ : संजय पंकज

–महावाणी स्मरण में जुटे साहित्यकार। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ और जानकीवल्लभ शास्त्री के साम्य पर हुआ विमर्श
मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। भारतीय संस्कृति के महान चिंतक तथा विश्व मानवतावाद के समर्थ दार्शनिक कवि रवींद्रनाथ टैगोर और गीत पुरुष आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री अपनी शब्द साधना एवं भाव संपदा के कारण कालजयी रचनाकार हैं। दोनों ने साहित्य की लगभग सारी विधाओं में श्रेष्ठ लेखन किया है। प्रकृति और प्रेम के यथार्थ को अपने मर्म में आत्मसात करके जिस ढंग से व्यक्त किया है वह अनुपम और अतुलनीय है। – यह बातें बेला पत्रिका की ओर से आयोजित निराला निकेतन के महावाणी स्मरण में जानकीवल्लभ शास्त्री और रवींद्र नाथ ठाकुर पर विस्तार से बोलते हुए बेला के संपादक कवि गीतकार डॉ संजय पंकज ने कही। डॉ पंकज जी ने आगे कहा कि सात सर्गो के महाकाव्य राधा में शास्त्री जी ने प्रेम, अध्यात्म, भक्ति को राधा-कृष्ण के तात्विक संदर्भ में व्यक्त किया है। रवींद्र नाथ ने शांतिनिकेतन तो जानकीवल्लभ शास्त्री ने निराला निकेतन को व्यापक साधना-स्थल के रूप में प्रस्तुत किया। रवीन्द्र नाथ टैगोर और जानकीवल्लभ शास्त्री आध्यात्मिक चेतना तथा मानवीय मूल्यों के भारतीय श्रेष्ठतम सांस्कृतिक रचनाकार हैं। ऋषि प्रज्ञा और दार्शनिक मनीषा के दोनों बड़े शब्द साधक हैं। इनके गीतों के भाव और सौंदर्य आलोक की यात्रा कराते हैं। दोनों ही आलोक के साधक, गायक और संधानी हैं। अंतश्चेतना में उड़ान भरने वाले आलोक पुरुष हैं रवींद्र और जानकीवल्लभ। डॉ संजय पंकज ने विषय केंद्रित विचार के बाद अपने गीत – जर्जर कश्ती आंधी पानी, टूटी है पतवार/ जाना है किस और कहां पर, भूला खेवनहार, कौन उतारे पार – सुनाकर सबके मर्म को झकझोर दिया। अपने अध्यक्षीय उद्गार में शुभ नारायण शुभंकर ने कहा कि विश्वकवि रवींद्रनाथ और मनीषी कवि जानकीवल्लभ शास्त्री दोनों ही भारत के रागात्मक प्राण हैं। शुभंकर जी ने – इसलिए मिली नहीं स्वतंत्रता कि बेलगाम हो चले जुबान देश में – गीत सुनाकर आजादी का सच्चा अर्थ बताया। विजय शंकर मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि जानकीवल्लभ शास्त्री और रवींद्र नाथ दोनों विश्व मानवतावाद के रचनाकार थे जिनकी रचनाओं में प्रेम, करुणा, सहानुभूति, जड़ और चेतन सबके प्रति सद्भाव तथा संवेदना है। विजय शंकर मिश्र ने गीत –  पग पग ठोकर पग पग बाधा, पग पग उलझन भटकन है, नाम इसीका जीवन है – सुनाकर सब में ऊर्जा का संचार किया। नरेंद्र मिश्र ने – परशुराम का परशु सजग है, बच न सकोगे खरद्विबाहु,  सत्येन्द्र कुमार सत्येन ने भोजपुरी गीत सुनाया तो रामवृक्ष चकपुरी ने – इंसान को सिखाए सुंदर वसूल पर चलना – नज्म सुनाकर जीवन संदेश दिया, देवेंद्र कुमार, श्रवण कुमार, शशिरंजन वर्मा ने राजनीतिक परिदृश्य पर तो प्रवीण कुमार मिश्र ने शिक्षक को केंद्र में रखकर कविता का पाठ किया। अरुण कुमार तुलसी की ग़ज़ल का शेर – दरिया को है क्या समंदर से वास्ता, मिलने के जुनून में खोज ही लेता रास्ता – प्रेरक रहा। शास्त्री जी की सुपुत्री शैलबाला मिश्र ने आचार्य जी की प्रिय रचना – गुलशन न रहा गुलचीं न रहा, रह गई कहानी फूलों की – सस्वर सुनाकर महावाणी को अनुभूत कराया। संचालन विजय शंकर मिश्र तथा धन्यवाद ज्ञापन मोहन प्रसाद ने किया।

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