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तप व त्याग के प्रतिमूर्ति थे भगवान परशुराम, उनका संपूर्ण जीवन है अनुकरणीय: ई. अजीत

मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। तप और त्याग के प्रतिमूर्ति भगवान परशुराम के जन्मदिन पर शनिवार को भूमिहार ब्राह्मण समाजिक फ्रंट के द्वारा स्थानीय विद्यापति भवन के सभागार में हर्षोल्लास के साथ परशुराम जयंती मनाई गई। इस अवसर पर लोगों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नमन किया।
                           कार्यक्रम के प्रारंभ में परशुराम भक्तों ने उनके तैल चित्र पर पुष्प अर्पित किया। तदुपरांत *फ्रंट के अध्यक्ष सुरेश शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मंत्री अजीत कुमार एवं सुधीर शर्मा* ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया। इस मौके पर अपने उद्घाटन भाषण में फ्रंट के अध्यक्ष सुरेश शर्मा ने भगवान परशुराम के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए कहा की आज भी भगवान परशुराम अदृश्य होते हुए भी इस भूतल पर विद्यमान हैं। उनके पुण्य प्रताप से ही हम सब आगे बढ़ रहे हैं । उन्होंने कहा कि हम सब को भगवान परशुराम जी से प्रेरणा लेकर समाज की मज़बूती के लिए कटिबद्ध होना पड़ेगा। उन्होंने कहा की फ्रंट की सोच है कि भगवान परशुराम की जयंती के दिन सभी परशुराम भक्तों के घर में उनकी पूजा हो। श्री शर्मा ने कहा कि फ्रंट इसके लिए विशेष कार्यक्रम चलाएगी।
                इस अवसर पर पूर्व मंत्री अजीत कुमार ने कहा कि  परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं।  *उनका जन्म* *५१४२ वि पू  वैशाख शुक्ल अक्षय* *तृतीया के रात्रि के प्रथम पहर में छ:* *उच्च ग्रहों के योग में हुआ था।* जिस कारण वे तेजस्वी, यशस्वी तथा वर्चस्वी महापुरुष बने थे।  वर्चस्वी होने के बावजूद वे त्रेता युग में  राजा जनक, राजा दशरथ जैसे राजाओं को भी समुचित सम्मान देते थे। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। इतना ही नहीं भीष्म, द्रोण एवं कर्ण जैसे प्रतापी बाँकुरा को भी शस्त्र विद्या दिया था। उनका संपूर्ण जीवन साहस और पराक्रम से भरा था जिस वजह से हमारे समाज ने आज़ादी की लड़ाई से लेकर देश-प्रदेश के नवनिर्माण में साहसिक भूमिका निभाकर अपनी पहचान कायम की है।
                                श्री कुमार ने कहा कि भगवान परशुराम ने अपने जीवन काल में कभी भी पराजय को स्वीकार नहीं किया। इतिहास गवाह है कि उन्होंने संघर्ष के बल पर हर एक चुनौती का मुकाबला कर सफलता पाया था। श्री कुमार ने कहा कि आज के समय में यदि हम सब भगवान परशुराम के जीवन की विशेषताओं को वरण कर सकें, तो हम बड़े से बड़े  विपत्तियों को पराजित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम किसी वर्ग विशेष के नहीं, बल्कि संपूर्ण सनातन  धर्मावलंबियों के आदर्श हैं।
            समारोह को संबोधित करते हुए कार्यकारी अध्यक्ष सुधीर शर्मा ने कहा कि भगवान परशुराम अन्याय के खिलाफ पूरी दुनिया में न्याय के पहले उद्घोषक थे। न्याय की कसौटी पर उनके लिए कोई अपना पराया नहीं था। यही कारण था कि एक तरफ अन्यायी राजाओं से पृथ्वी को मुक्त कराया, तो दूसरी ओर दशरथ, जनक, भीष्म जैसे राजाओं पर उनका विशेष स्नेह भी था । शस्त्र, शास्त्र और तपस्या पर हर रूप से निपुण संसार में वे अकेले महापुरुष हुए। हमें गर्व है कि हम उस कुल में पैदा हुए हैं , जहां ऐसे महान संत हुए जिन्हें विष्णु का छठा अवतार माना गया है। आज हिंदुस्तान में सामाजिक न्याय और राष्ट्रवाद जैसे दो शब्दों की बड़ी चर्चा होती है। हमारे कुल गौरव भगवान परशुराम जी ने जहां सामाजिक अन्याय के खिलाफ सामाजिक न्याय का पहला झंडा बुलंद किया, वहीं आचार्य चाणक्य ने इस देश में छोटे-छोटे राज्यों को एक सूत्र में पिरो कर अखंड भारत में राष्ट्रवाद को पहली बार परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि देश-प्रदेश के निर्माण, स्वतंत्रता आंदोलन एवं तमाम सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में भूमिहारों ने समाज में सबसे आगे आकर नेतृत्व दिया है।
               इस मौके पर जयंती समारोह को पूर्व विधायक प्रोफेसर रामाकांत पांडे , फ्रंट के उपाध्यक्ष अरुण कुमार सिंह, महासचिव धर्मवीर शुक्ला, अशोक सिंह ,वरिष्ठ शिक्षक नेता प्रोफेसर एन के पांडे , प्रोफेसर तारन राय , राजेश सिंह , धर्मेंद्र धारी सिंह, अंजनी बेनीपुरी, शिशिर कौंडिल्य, कौशल शर्मा, प्रबोद सिंह ,राकेश सिंह ,अवधेश सिंह , मुरारी शरण सिंह उर्फ श्याम जी , सूर्यकांत पांडे, रवि शंकर राय, प्रहलाद राय , बंटी राय , संजीत ठाकुर आदि नेताओं ने संबोधित  किया।

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