मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। गीत कविता चिंतन विचार और प्रतिबंध के प्रवर्तक डॉ शिवदास पांडेय जी की जन्मजयंती के अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्गार में डॉ महेंद्र मधुकर ने कहा कि शिवदास जी की रचनात्मक चेतना वहां पहुंची हुई थी जहां से वे शब्दों और स्थितियों को साफ-साफ देखते तथा अनुभूत करते थे। कई संस्मरणों के माध्यम से डॉ मधुकर ने शिवदास पांडेय जी के व्यक्तित्व को उजागर करते हुए कहा कि वे एक श्रेष्ठ उपन्यासकार थे और उनके उपन्यास समय की चुनौतियों के ऐसे जवाब हैं जिसमें भारतीय परंपरा मंगल रूप में मिलती है। विभिन्न विधाओं में लिखने के बावजूद वे मूलतः कवि थे और उनके गीत धीरे-धीरे चेतना के प्रकर्ष पर पहुंचते चले गए।
डॉ संजय पंकज ने विस्तार से बोलते हुए कहा कि शिवदास पांडेय असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे। वे लगभग साहित्य की समस्त विधाओं में श्रेष्ठ लिखते रहे। वे उच्च कोटि के मनुष्य थे जिनके यहां सब का स्वागत होता था। वे ऐसे अजातशत्रु थे जो अपने निंदक की भी प्रशंसा करते थे। संजय पंकज ने डॉ पांडेय के प्रेम गीतों पर बोलते हुए कहा कि उनकी प्रणय से प्रणव तक की यात्रा बहुत ही मधुर और उत्कृष्ट है। उनके गीतों में मन के कोमल और संवेदनशील चित्र मिलते हैं। उनके व्यंग्य गीत समाज की सच्चाइयों से साक्षात्कार कराते हैं।
गांधीवादी चिंतक लक्षणदेव प्रसाद ने कहा कि वे बड़े ही सरल संवेदनशील रचनाकार थे तथा संबंधों का निर्वाह करना जानते थे। उन्होंने जिन समस्याओं की ओर अपनी रचनाओं में इशारा किया है वे समस्याएं आज भी जीवंत रूप में बनी हुई है। आलोचक और कवयित्री डॉ पूनम सिन्हा ने कहा कि मिथक का जितना सुंदर प्रयोग शिवदास पांडेय ने अपने गीतों में किया है वह अद्भुत है। कथा लेखन में मिथकों के प्रयोग खूब हुए हैं लेकिन गीतों में इसका प्रयोग सफलता के साथ निर्वाह कर लेना यह बड़ी बात है और यह डॉ शिवदास पांडेय जी की एक ऐसी विलक्षणता है जिसे हम हिंदी के रचनाकारों में नहीं देखते हैं।
डॉ विजय शंकर मिश्र ने विषय प्रवेश करते हुए शिवदास पांडेय की कई पंक्तियों को उद्धृत किया और कहा कि वे जितने सहज और सरल थे उतने ही अपनी रचनाओं में गंभीर और पारदर्शी हैं। उन्होंने जो भी लिखा ज्ञान को पचाकर लिखा। वे एक साधक रचनाकार थे। डॉ अरुण कुमार सिंह ने कहा कि मैं शिवदास पांडेय जी से हमेशा प्रेरित होता था और उन्होंने जो रचनात्मक दिशाएं दिखाई मैं उसे पर चलने का प्रयास आज भी करता हूं।
डॉ पुष्पा प्रसाद ने पांडेय जी के कई गीतों की सरस प्रस्तुति की और कहा कि जब कभी भी मुझे उनकी जरूरत होती थी वह निश्चित रूप से मुझे मार्ग निर्देशित करते थे। डॉ सोनी सुमन और डॉ अनु ने भावोद्गार के साथ-साथ अपने गीत भी सधे हुए स्वर में प्रस्तुत किया। डॉ हरिकिशोर प्रसाद सिंह, शिव्गतुल्लाह हमीदी, गणेश प्रसाद सिंह, मुक्तेश्वर प्रसाद, रंजीत कुमार, लोकनाथ मिश्र, धनंजय झा ने भी उद्गार प्रकट किया। सिद्धि शंकर मिश्र ने कई गीतों की प्रभावशाली प्रस्तुति की उनके साथ तबले पर हिमाचल संगत कर रहे थे। डॉ वंदना विजय लक्ष्मी ने आए हुए अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि पिताजी के आप सब आत्मीय हैं और आ जाते हैं तो ऐसा लगता है कि पिताजी यहां जीवन्त रूप में उपस्थित हैं।
अंत में डॉ विकास नारायण उपाध्याय ने धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि मैं राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी और शिक्षक रहा लेकिन डॉ शिवदास पांडेय जी के कारण उनके सानिध्य में रहते हुए साहित्य में मेरी गहरी रुचि हुई। आप सब ने आकर वातावरण को आत्मीय और रसमय कर दिया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।