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नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला: आचार्य सुजीत शास्त्री

मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। नवरात्र मे दुर्गा सप्तशती का पाठ समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। यह पाठ करने से मां भगवती प्रसन्न होकर अपनी कृपा दृष्टि करती हैं।
सप्तशती अर्थात सात सौ यानि की जिस ग्रंथ में सात सौ मंत्रों को समाहित किया गया हो।आचार्य सुजीत शास्त्री (मिठ्ठू बाबा)ने कहा कि इस पाठ को करने से दुर्गा मां असीम कृपा बरसाती हैं।पाठ से पहले दुर्गा सप्तशती पुस्तक का पंचोपचार पूजन करें, तत्पश्चात शापोद्धार, उत्कीलन कर कवच,अर्गल,किलक का पाठ करे। फिर सुक्त पाठ,न्यास विनियोग के साथ नवार्ण मंत्र जप कर तिनो चरित्र आर्थात तेरहो अध्याय का किसी बिशेष मंत्र से संपुटित पाठ या केवल तेरहों अध्याय का सादा पाठ करे। तत्पश्चात पुन: न्यास विनियोग के साथ नवार्ण मंत्र का जाप और तिनो रहस्य का मानसिक पाठ कर क्षमा प्रार्थना करें। आइए जानते हैं कि दुर्गा सप्तशती के किस अध्याय के पाठ को करने से क्या फल मिलता है?
दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय का पाठ करने से सभी प्रकार की चिंताएं दूर होती हैं। द्वितीय पाठ करने से किसी भी तरह की शत्रुबाधा दूर होती है और कोर्ट-कचहरी आदि से जुड़े मुकदमे में विजय प्राप्त होती है।
तृतीय अध्याय का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है।
चतुर्थ अध्याय का पाठ करने से मां जगदंबे के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। पांचवें अध्याय का पाठ करने से भक्ति, शक्ति एवं देवी दर्शन का आशीर्वाद मिलता है।छट्ठेअध्याय का पाठ करने से दुख, दारिद्रय, भय आदि दूर होता  है। सातवें अध्याय का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आठवां अध्याय वशीकरण एवं मित्रता करने के लिए विशेष रूप से किया जाता है। नौवें अध्याय का पाठ संतान की प्राप्ति और उन्नति के लिए किया जाता है। किसी खोई चीज को पाने के लिए भी यह पाठ अत्यंत सिद्ध एवं प्रभावशाली है। दसवें अध्याय का पाठ करने पर नौवें अध्याय के समान ही फल प्राप्त होता है।एकादश अध्याय का पाठ विद्या के साथ साथ तमाम तरह की भौतिक सुविधाएं प्राप्त करने के लिए किया जाता है। दुर्गा सप्तशती के बारहवें अ​ध्याय का मान-सम्मान एवं लाभ दिलाने वाला है। और तेरहवें अध्याय का पाठ ​विशेष रूप से मोक्ष एवं भक्ति के लिए किया जाता है। यह अलग अध्याय का अलग अलग फल है लेकिन सप्तशती के तेरह अध्यायो को तिन चरित्र मे बाटा गया है। प्रथम अध्याय प्रथम चरित्र, द्वितीय से चतुर्थ अध्याय मध्यम चरित्र और पंचम से तेरहवें अध्याय तक उत्तम चरित्र है। अगर तिनो चरित्र आर्थात सम्म्पुर्ण  सप्तशती का पाठ संभव न हो तो किसी एक चरित्र का पाठ कर सकते है, लेकिन आधे चरित्र का पाठ कदापि न करें।जय माता दी।

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