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भारतीय स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य तिलक की स्मृति में मुजफ्फरपुर में आयोजित होगा राष्ट्रीय एकता को समर्पित दसदिवसीय भव्य ‘गणपति उत्सव’

मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली द्वारा इस वर्ष 18 सितंबर, 2023 से श्री गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर भारतीय स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य तिलक की पुण्य स्मृति में मुजफ्फरपुर में ‘गणपति उत्सव’ का शुभारंभ किया जायेगा, जो अगले दस दिनों तक निरंतर ज़ारी रहेगा।
सर्किट हाउस, मुजफ्फरपुर में 2 अप्रैल को आयोजित एक प्रेसवार्ता में राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास के अध्यक्ष और संस्कृतिकर्मी नीरज कुमार ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि लोकमान्य तिलक ने स्वराज्य के लिये संघर्ष की शक्ति बढ़ाने और सामाजिक एकता को सुदृढ़ करने के लिये 1893 में महाराष्ट्र के पुणे शहर में सर्वप्रथम सामूहिक रूप से गणपति उत्सव मनाने की शुरुआत की थी, जिसने देखते ही देखते स्वराज्य के लिये संघर्ष के एक राष्ट्रीय अभियान का स्वरूप ले लिया था। लोकमान्य तिलक की इसी महान विरासत की स्मृति में दिनकर न्यास ने मुजफ्फरपुर में दसदिवसीय गणपति उत्सव आयोजित करने का संकल्प लिया है। इस अवसर पर पारंपरिक रूप से गणपति पंडाल, पूजा-आरती और विसर्जन की रीतियों का पालन करने के साथ-साथ दस दिनों तक लगातार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे, जिसमें देश भर से 500 कलाकार, संस्कृतिकर्मी एवं साहित्यसेवी भाग लेंगे।
राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ स्मृति न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार ने कहा कि न्यास लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मुंशी प्रेमचन्द एवं राष्ट्रकवि दिनकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने को अपना लक्ष्य बनाकर पिछले 32 वर्षों से निरंतर सांस्कृतिक भारत के निर्माण में संलग्न रहा है।
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण और विशिष्ट है। 30 दिसम्बर 1916 को लखनऊ की सभा में तिलक जी ने ही सर्वप्रथम “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे” का ऐतिहासिक उद्घोष किया था, जिसकी प्रेरणा से भारतीय जनमानस स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में ललकार उठा था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी रणभेरी बजायी, जिसकी अनुगूंज समूचे देश में कोने-कोने तक फैल गई थी।
लोकमान्य तिलक को अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध ‘राष्ट्रीय आक्रोश का जन्मदाता’ और ‘भारतीय क्रांति का जनक’ माना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध जन असंतोष प्रकट करने के जो अनूठे तरीके निकाले थे, ‘गणपति उत्सव’ और ‘शिवाजी उत्सव’ उनमें प्रमुख थे। देश में सबसे पहली बार सन् 1893 में महाराष्ट्र के पुणे में सार्वजनिक तौर पर तिलक जी द्वारा गणपति उत्सव मनाये जाने की शुरुआत की गयी। उस समय गणपति उत्सव धार्मिक कम और राष्ट्रीय पर्व ज्यादा था। बल्कि कहना चाहिए कि वह स्वराज्य के लिए समाज को जागृत करने वाला एक सामाजिक और सांस्कृतिक अभियान बन गया था।
तिलक का संपूर्ण जीवन ‘कर्मयज्ञ’ था। इस कर्मयज्ञ का मुख्य उद्देश्य उस राष्ट्र को जगाना था, जो कुंभकर्णी निद्रा की स्थिति में था। अभूतपूर्व इच्छाशक्ति, परिश्रम और संगठन की असाधारण क्षमता का उपयोग कर उन्होंने राष्ट्र में एक नई चेतना का संचार करने का प्रयास किया। वे देश के पहले ऐसे प्रखर पत्रकार थे, जिन्हें पत्रकारिता के कारण तीन बार कारावास भोगना पड़ा था। तिलक ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से जन जागृति की नयी पहल की थी और उन्हें भारत को दासता से मुक्त करने के लिये जनता के आह्वान का राष्ट्रीय मंच बना दिया था।
मुजफ्फरपुर के साथ लोकमान्य तिलक का अत्यंत गहरा नाता रहा है। 30 अप्रैल, 1908 को बंगाल विभाजन का विरोध करते हुए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने यहीं पर कोलकाता के मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड पर बम फेंका था। इस घटना की प्रतिक्रिया में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा किये जा रहे अत्याचारों की बेहद कड़ी आलोचना करते हुए तिलक जी ने अपनी चिर-परिचित आक्रामक भाषा में ‘केसरी’ में दो लेख लिखे थे, जिसके कारण उन्हें राजद्रोह का दोषी ठहराया गया और छह साल के लिये कालेपानी की सज़ा के तहत मांडले जेल भेज दिया गया। बर्मा के मांडले जेल की अत्यंत यातनामय परिस्थितियों में ही लोकमान्य तिलक ने ‘श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य अर्थात् कर्मयोगशास्त्र’ जैसे युगांतरकारी महत्व के ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की थी, जो स्वाधीनता आन्दोलन के दौर से लेकर आज तक करोड़ों देशवासियों का पथ-प्रदर्शन  करता रहा है।
आगामी 18 सितंबर, 2023 को बिहार के मुजफ्फरपुर में भव्य ‘गणपति उत्सव’ का दसदिवसीय आयोजन करने के राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास के संकल्प के पीछे राष्ट्रीय जागरण तथा स्वराज्य के लिये संघर्ष की प्रेरणा जगाने वाली लोकमान्य तिलक की इस महान विरासत को याद करने के साथ-साथ वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय एकता एवं सामूहिकता के प्रयासों को बल देना भी है, जिसके लिये न्यास कृतसंकल्प रहा है।
राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास द्वारा आयोजित आज की प्रेसवार्ता में शहर के प्रसिद्ध कवि श्री संजय पंकज, समाजसेवी श्री मुकेश त्रिपाठी और श्री अविनाश तिरंगा भी उपस्थित रहे, जिन्होंने पत्रकारों को संबोधित किया।सुपरिचित कवि श्री संजय पंकज जी ने प्रेसवार्ता में अपने संबोधन में कहा कि प्रस्तावित दसदिवसीय ‘गणपति उत्सव’ के आयोजन के माध्यम से हम केवल इसलिये लोकमान्य तिलक को स्मरण नहीं करना चाहते हैं कि उन्होंने ‘गीता रहस्य’ जैसे महान ग्रन्थ की रचना की, न ही केवल इसलिये कि उन्होंने देश को ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे’ जैसा युगांतरकारी महामंत्र दिया, बल्कि हम इस बहाने उनके भीतर की उस आध्यात्मिकता, भारतीयता और विश्वबन्धुत्व की दिव्य भावना का भी स्मरण करना चाहते हैं, जिसके सहारे आने वाली पीढ़ियों के लिये संस्कृति, संस्कार और स्वाभिमान से युक्त वातावरण का निर्माण संभव हो सके। हमें विश्वास है कि हमारा यह संकल्प सिद्ध होगा।
‘गणपति उत्सव’ के दसदिवसीय आयोजन के निम्नलिखित प्रमुख आकर्षण होंगे :
(1) भव्य गणपति पंडाल, प्रतिदिन पूजा-आरती, गणपति विसर्जन के साथ समापन
(2) लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, मुंशी प्रेमचंद, निराला और राष्ट्रकवि दिनकर के व्यक्तित्व एवं योगदान पर केन्द्रित 50 नाटकों का प्रस्तुतीकरण
(3) लोकमान्य तिलक और भारतीय स्वराज्य के लिये उनके योगदान पर केन्द्रित विभिन्न परिचर्चाओं का आयोजन
(4) जल-स्वराज, जल-संरक्षण, उपभोक्ता जागरूकता एवं राष्ट्रीय एकता जैसे विषयों पर केन्द्रित विभिन्न विचार-गोष्ठियों का आयोजन
(5) लोकमान्य तिलक पर केन्द्रित ‘स्मारिका’ का विमोचन
(6) पुस्तक मेला का आयोजन
(7) संगीत एवं नृत्य के कार्यक्रमों का नियमित आयोजन

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