–ब्रजकिशोर बाबू का हिंदी जगत में धूमकेतु की तरह आना हुआ – डॉ संजय पंकज
–स्मृति पर्व में कहा डॉ विजय शंकर मिश्र ने कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे कविवर डॉ ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह
— द पार्क के सभागार में जुटे साहित्यकार,पत्रकार, परिजन,पुरजन और आत्मीय।
मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। शब्द शब्द जीवन राग – जैसी कृति के रचनाकार ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह की पुण्यतिथि पर द पार्क में आयोजित स्मृति पर्व में मुख्यअतिथि बीआरएबीयू की अवकाश प्राप्त हिंदी विभागाध्यक्ष कवयित्री और आलोचक डॉ पूनम सिन्हा ने कहा कि ब्रजकिशोर बाबू की रचनाओं में जो विविधताएं मिलती हैं वह उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के कारण है। आग और राग का अद्भुत संतुलन है उनकी कविताओं में। मन के भावों को सुंदर शिल्प और समृद्ध भाषा में प्रस्तुत करने का उनका कौशल अनुकरणीय है। उन्होंने देशज शब्दों का प्रयोग बड़ी ही कुशलता से अपने गीतों में किया है। परंपरा में निष्ठा होने के साथ ही प्रगति के हिमायती ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह का जीवन अल्प रहा लेकिन उन्होंने जितना काम किया वह समाज, साहित्य, संस्कृति और मनुष्यता के लिए महत्वपूर्ण है।
अध्यक्षीय उद्गार में डॉ संजय पंकज ने कहा कि डॉ ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह का हिंदी जगत में धूमकेतु की तरह आना हुआ। उनका जीवन बड़ा ही संघर्ष पूर्ण रहा। लोहिया के चिंतन से प्रभावित होकर उन्होंने समाजवादी विचारधारा से जुड़कर बेनीपुरी, जयप्रकाश नारायण, रामजन्म ओझा जैसे विचारकों के साथ काम किया। वे सच्चे समाजसेवी, इमानदार जनप्रतिनिधि और व्यापक जीवन अनुभव के कवि थे। उनकी कविताओं में जीवन का उल्लास, उत्साह और राग है। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के वे प्रिय छात्र थे। अपने गुरु के सानिध्य में उन्होंने शांति निकेतन की यात्रा की जिसका संस्मरण बार-बार पठनीय है।
ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के उपरांत कवि गीतकार डॉ विजय शंकर मिश्र ने विषय प्रवेश कराते हुए ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी कविताओं का शास्त्रीय पक्ष मजबूत और लोक पक्ष व्यापक है। गीतों को पढ़ने से पता चलता है कि वे संगीत के जानकार थे इसीलिए उन्हें रागों में बांधना आसान है। जनता के दुख दर्द को अनुभूत करते हुए ब्रजकिशोर बाबू ने जीवन-संघर्ष की कविताएं लिखी हैं। वे स्वच्छंदतावादी धारा के महत्वपूर्ण कवि थे।
युवा कवयित्री डॉ अनु ने कहा कि हम अपने रचनाकर्म को पूर्वज रचनाकारों के अध्ययन से ही विकसित और समृद्ध करते हैं। ब्रकिशोर प्रसाद सिंह की रचनाएं सहज संवाद करती हुई मन को छूती हैं। युवाकवि श्यामल श्रीवास्तव ने कहा कि ओज, शौर्य और पराक्रम के कवि ब्रजकिशोर बाबू प्रेम, प्रकृति और राष्ट्रीय चेतना के भी कुशल शब्दकर्मी थे ।
इस अवसर पर ललितेश्वर प्रसाद सिंह, सर्वेश्वर प्रसाद सिंह, प्रणय कुमार, मधु मंगल ठाकुर, डॉ श्रीनारायण प्रसाद सिंह, अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा, प्रेमभूषण, अनिल मिश्रा, प्रो ब्रजेश कुमार, अखिलेश राय, सियाराम तिवारी, सुधांशु राज, राकेश कुमार सिंह, समीर, अभय, चैतन्य चेतन, अनुराग आनंद, दिलीप ,प्रकाश , कृशानु, प्रसून, नीरज, कुंजेश, गोपाल प्रसाद, माला कुमारी , सुमन सिन्हा, विभु कुमारी, अरुणिमा, पूजा,प्रज्ञा आदि ने भी अपने भाव-सुमन अर्पित किए।
स्वागत संबोधन में कवि-पुत्र डॉ केशव किशोर कनक ने कहा कि मेरे लिए यह स्मृति पर्व आशीर्वाद और प्रेरणा है। पिता की यादों को मैं उनकी सेवा तथा रचनाओं के माध्यम से आत्मसात करके बचाने का विनम्र प्रयास कर रहा हूं जिसे आप सब संबल प्रदान करते हैं। संचालन करते हुए डॉ विजय शंकर मिश्र ने ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह के कई गीतों को सस्वर प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन अमर कुमार ने किया।