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नवरात्रि शब्द ही क्यों बना: आचार्य सुजीत शास्त्री

मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। नवरात्रि शब्द से नव विशेष रात्रियो का बोध होता है। इस समय नव निधियो की अधिष्ठातृ शक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है,आचार्य सुजीत शास्त्री (मिठ्ठू बाबा)ने बताया कि रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है।और सिद्धि प्राप्ती के लिए रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। साथ ही साथ ऋतुओं के संधिकाल में यह नौ रात्रि आगामी शीत ऋतु के लिए नव अनुभूतियां लेकर आती है । दिन का तापमान तो पुर्व सदृश होता है, पर रात्रि में सुखद ठंडक का अहसास आ जाता है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्रि को रात में ही मनाने की परंपरा बनी।जब साधक रात्रि में तन्मय होकर मां दुर्गा की आराधना करता है तो उसे न केवल विशेष फल की प्राप्ति है बल्कि सिद्धि प्राप्ति की संभावना भी रहती है।भगवान श्रीराम के द्वारा शुरु किये गये नवरात्र व्रत को श्रद्धा भक्ति से शक्ति के नव रुपों की उपासना हम सब करते है जिससे दशवे दिन दशहरा के दिन धर्म के दश लक्षण प्राप्त करते है।और धर्म के रास्ते पर चलते हुए नव शक्तियो से प्राप्त निधियो से अपना समस्त जीवन सुखमय व्यतित करते है।

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