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गणपति-उत्सव में दूसरे दिन की सांस्कृतिक संध्या में अमर कथाशिल्पी मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘कफन’ पर आधारित नाट्य मंचन के साथ-साथ बिहार की सुप्रसिद्ध लोकगायिका प्रिया मल्लिक के सुमधुर गायन ने समां बांधा

मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता हेतु स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा शुरू किये गये गणपति उत्सव के पावन अवसर पर रामदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर के प्रांगण में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली द्वारा 19-28 सितंबर तक आयोजित किये जा रहे स्वराज्य-पर्व में भारतीय विद्या, साहित्य एवं संस्कृति समागम सह राष्ट्रीय पुस्तक मेला के दूसरे दिन की सांस्कृतिक संध्या में आज सर्वप्रथम नव संचेतन संस्था, मुजफ्फरपुर के रंगकर्मी कलाकारों ने प्रमोद कुमार आज़ाद के रूपांतरण एवं निर्देशन में मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘कफ़न’ पर आधारित नाटक की प्रभावशाली प्रस्तुति की।
महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘कफन’ एक बहुस्तरीय कहानी है, जिसमें घीसू और माधव की बेबसी, अमानवीयता और निकम्मेपन के बहाने तत्कालीन समाज के सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ की सामाजिक-आर्थिक संरचना, उसकी अमानवीयता और नृशंसता का प्रेमचंद ने हृदयविदारक चित्रण किया है। मंचित नाटक ‘कफ़न’ में कर्मकाण्डवादी व्यवस्था और सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ वाले समाज की सच्चाई बेहद प्रभावी तरीके से उजागर होती है। कलाकारों के सशक्त अभिनय और संजय कुमार संजू के संगीत ने नाटक की मार्मिकता को सघन करने में प्रभावी भूमिका निभाई। नाटक दर्शकों के अन्तर्मन को गहराई तक झकझोरने में सफल रहा।
गणपति-उत्सव के दूसरे दिन की सांस्कृतिक संध्या की दूसरी और अंतिम प्रस्तुति के रूप में बिहार की सुप्रसिद्ध लोकगायिका प्रिया मल्लिक द्वारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला गायन इस आयोजन और मुजफ्फरपुर के कलाप्रेमी दर्शकों की स्मृतियों में कलात्मक अनुभव के एक विशिष्ट क्षण के रूप में सदा ही अमिट रहेगा।
सुश्री प्रिया मल्लिक ने अपने गायन की शुरुआत संस्कृत में रचित एक गणपति वंदना की सुमधुर प्रस्तुति से की। दूसरी गीत प्रस्तुति के रूप में उन्होंने गाइये गणपति जग वंदन शीर्षक प्रसिद्ध भक्ति गीत पेश किया, जिसने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। एक के बाद एक विविधरंगी भक्ति एवं लोकगीत प्रस्तुति से प्रिया मल्लिक ने अपनी प्रसिद्धि के अनुरूप ही गणपति-उत्सव में शामिल हज़ारों श्रद्धालुओं और श्रोताओं-दर्शकों को आध्यात्मिक रंग से सराबोर कर दिया।

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