

मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। माता सती के दश महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या धूमावती माता हैं। धुएं से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम धूमावती हुआ। इनके इस नामकरण के पीछे एक कथा है। आचार्य मिट्ठू बाबा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने अपने यहां एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस आयोजन में उन्होंने सभी देवी- देवताओं को बुलाया लेकिन सती और भगवान शंकर को इस आयोजन में आमंत्रित नहीं किया। चुंकि राजा दक्ष शिव और सती के विवाह से प्रसन्न नहीं थे, इसलिए उन्होंने उनकी उपेक्षा कर इस यज्ञ का निमंत्रण नहीं दिया। सती इससे अनजान थी, लेकिन भगवान शिव इस बात को जानते थे। फिर भी उन्होंने सती से इसका जिक्र नहीं किया। आखिरकार जब माता सती के कानों में इस आयोजन की बात पहुंची तो उन्हें एक बार तो बुरा लगा, फिर उन्होंने सोचा कि पिता के घर होने वाले आयोजन में पुत्री को निमंत्रण देने की आवश्यकता नहीं होती। पुत्री तो बिना निमंत्रण के भी पिता के घर जाने का अधिकार रखती है। यह सोच कर उन्होंने अपने मन की बात शिवजी से कहीं। भगवान शिव ने उन्हें समझाते हुए कहा कि विवाह के पश्चात पुत्री को अपने पिता के घर भी बिना निमंत्रण के नहीं जाना चाहिए। लेकिन सती शिवजी के तर्को से सहमत नहीं हुई और उन्होंने अपने पिता के घर जाने का निश्चय कर लिया। लेकिन वहां जाकर वह अपने पिता के तिरस्कार पूर्ण व्यवहार से दुखी होकर यज्ञ की अग्नि में जलकर भस्म हो गई। उनके जलने पर जो धुआं निकला, उससे ही माता धूमावती का जन्म हुआ।
आचार्य मिट्ठू बाबा ने बताया कि धूमावती के जन्म के संबंध में एक अन्य कथा भी है। एक बार माता पार्वती को बहुत तेज भूख लगी। उस समय कैलाश पर खाने के लिए कुछ नहीं था। वे भगवान शिव के पास भोजन की व्यवस्था करवाने के लिए गई। लेकिन शंकर भगवान समाधि में लीन थे। उनके बार-बार आग्रह करने पर भी जब उनकी समाधि नहीं टूटी तो उन्होंने भूख से व्याकुल होकर शंकर भगवान को ही भोजन के रूप में निगल लिया। इससे उनकी भूख तो शांत हो गई लेकिन भगवान शंकर के कंठ में विष होने के कारण माता पार्वती के मुंह से धुआं निकलने लगा और विष के प्रभाव से उनका शरीर जर्जर और विकृत होने लगा। तब भगवान शिव माता पार्वती के शरीर से बाहर निकल आए और उनके इस रूप को देखकर कहा कि आज से तुम देवी “धूमावती” के रूप में पूजी जाओगी। अपनी चूहा को शांत करने के लिए तुमने अपने पति को ही निगल लिया इसलिए तुम्हारी स्वरूप को विधवा होने का श्राप मिलेगा। ऐसा कहा जाता है कि इस श्राप के कारण ही माता धूमावती की पूजा विवाहिताएं नहीं करती हैं।