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ललन कुमार जीवंत कवि और जिंदादिल इंसान थे: संजय पंकज

–निराला निकेतन में आयोजित स्मरण ललन कुमार में भावुक हुए साहित्यकार
मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। ” कोई जरूरी नहीं कि अच्छा कवि होना अच्छा आदमी होना भी हो लेकिन कवि के साथ  आदमी भी अच्छा हो तो उसका प्रभाव ज्यादा असरदार और गहरा होता है। कविता मनुष्यता की भाषा होती है मगर संवेदना की व्यापकता मानवीय गुणों के कारण ज्यादा होती है। कवि ललन कुमार सहृदय, आत्मीय और सरल हृदय के मनुष्य थे। वे खूब वैचारिक बहस करते थे, दो टूक सच का बयान करते थे मगर कभी किसी के लिए कटुता नहीं रखते थे। उनकी राष्ट्रीय भावना और मानवीय मूल्य हम सबके लिए प्रेरक हैं। ” – ये बातें निराला निकेतन में आयोजित ‘स्मरण कवि ललन कुमार’ में उनकी प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर बेला के संपादक साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने कही। डॉ पंकज ने आगे कहा कि बड़ों को आदर, समकालीनों को प्यार और नई पीढ़ी को स्नेह देना उनका सहज स्वभाव था। संबंध, संघर्ष, समाज, प्रकृति, राष्ट्र, संस्कृति और मानवीय मूल्य उनकी कविता के विषय हुआ करते थे। ललन जी खूब पढ़ते थे, खूब लिखते थे और अपने कार्य क्षेत्र की व्यस्तता से समय निकालकर साहित्यिक- सांस्कृतिक आयोजनों में पूरे मन से पहुंचते थे। आचार्यश्री, राजेंद्र प्रसाद सिंह, शिवदास पांडेय जैसे विद्वानों के सान्निध्य में रहकर उन्होंने अपने को संस्कारित किया। वे उदार, सहयोगी और कर्मनिष्ठ थे। ललन जी जीवंत कवि और जिंदादिल इंसान थे। कवि शुभ नारायण शुभंकर ने कहा कि उनमें बच्चों जैसी उत्सुकता थी। वे जब भी कुछ नया लिखते थे तो सुनाते थे और बार-बार पूछते थे कैसा है? डॉ पुष्पा प्रसाद ने भावुकता में डूब कर कहा कि मैंने अपना छोटा भाई खोया है। कभी भी सहयोग करने से ललन जी पीछे नहीं हटे। मधुमंगल ठाकुर ने उनके साथ बिताए हुए क्षणों का संस्मरण सुनाया और कहा कि वे खुले हृदय के व्यक्ति थे। कवि प्रवीण कुमार ने कहा कि वह मेरे बड़े भाई थे और मुझे हमेशा प्रेरित करते थे। मुझे लिखते पढ़ते देखकर उन्हें बड़ी खुशी होती थी।देवेन्द्र कुमार ने कहा कि सहजता और बालमन उनकी विशेषता थी। डॉ हरि किशोर प्रसाद सिंह ने ललन जी पर केंद्रित एक कविता का पाठ किया और कहा कि हमेशा उत्साह और ताजगी में वे रहते थे। आलोक अभिषेक ने कहा कि ललन जी राह चलते भी तपाक से मिलते थे और नई कविता सुनाते थे। शशिरंजन वर्मा ने जानकीवल्लभ शास्त्री के प्रिय गीत ‘जिंदगी की कहानी रही अनकही, दिन गुजरते रहे सांस चलती रही’  सस्वर सुना कर उन्हें भावांजलि दी। आशा कुमारी और मोहन प्रसाद ने भी भावोद्गार प्रकट किए। धन्यवाद ज्ञापन ललन जी के पुत्र सत्यप्रकाश ने किया। उपस्थित सारे लोगों ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।

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