मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। वंदना विजयलक्ष्मी की पुस्तक मानवी भारतीय समाज के स्त्री संघर्ष की चेतना का घोषणापत्र है। यह पुस्तक हमें स्त्रियों की जागृत शक्तियों से परिचित ही नहीं कराती है अपितु स्त्री जीवन के वर्तमान संक्रमण काल की आशावादी दृष्टि का समर्थन भी करती है। उसे पूर्ण रूप से मानवी स्वीकृत किए जाने की उत्कट लालसा इस कृति की आत्मा है।- यह बातें मिठनपुरा स्थित सुधांजलि के सभागार में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ महेंद्र मधुकर ने अध्यक्षीय उद्गार में कही। डॉ मधुकर ने आगे कहा कि प्राचीन काल से वर्तमान काल तक की स्त्री स्थिति को गंभीरता से देखते हुए जो परिवर्तन हुए हैं उसे डॉ वंदना ने बहुत ही बारीकी से उल्लिखित किया है। पुस्तक केंद्रित संवाद की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डॉ संजय पंकज ने कहा कि भारतीय स्त्री अपनी प्रतिभा, क्षमता और ज्ञान के बल पर वैदिक काल से आज तक विकास की हर धारा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के साथ खड़ी रही है। भारतीय संस्कृति पारिवारिकता और साझेपन की संस्कृति है। वंदना जी के शोधात्मक और चिंतनपरक इस संग्रह के आलेखों में स्त्री अस्मिता की तलाश और उसके स्वाभिमान के संदर्भ में विवेकपूर्ण ढंग से बातें उठाई गई हैं। स्त्री संस्कृति, मर्यादा और विकास की धुरी होती है।मुख्यवक्ता कवयित्री और आलोचक डॉ पूनम सिन्हा ने कहा कि स्त्री के सारे अधिकारों को प्राप्त करने के बाद भी उनकी समानता, स्वतंत्रता और स्वायतता का प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। मानवी पुस्तक अनेक अनुत्तरित सवालों का जवाब देती है। डॉ निर्मला सिंह ने कहा कि वंदना विजयलक्ष्मी की यह कृति निश्चित रूप से स्त्री विमर्श के नए आयाम को उद्घाटित करती है। डॉ पुष्पा प्रसाद ने स्त्री के जीवन संघर्ष और अवदान की व्यापक चर्चा की और कहा कि स्त्री की स्थिति आज क्या है यह जानने के लिए यह पुस्तक महत्वपूर्ण है।पुस्तक की लेखिका डॉ वंदना विजयलक्ष्मी ने कहा कि यह पुस्तक स्त्री को संपूर्ण मानवी के रूप में स्वीकार किए जाने की उत्कट लालसा से लिखी गई है। अपने जीवन के 38 वर्षों में नौकरी के सफर में तथा अपने सामाजिक कार्यों के दौरान जिस दंश को देखा और महसूसा उसे वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक की उतार-चढ़ाव की पगडंडियों के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश की है। संवाद में विचार व्यक्त करने वालों में लोकनाथ मिश्र, उर्मिला पांडे, शिवग्त्तुल्लाह हमीदी, देवेंद्र कुमार, गणेश प्रसाद सिंह, श्री नारायण बेनीपुरी आदि प्रमुख थे। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए डॉक्टर विकास नारायण उपाध्याय ने कहा की इस पुस्तक का लेखन अध्ययन और अनुभव के आधार पर किया गया है।
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