मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। 13 अप्रैल को बैसाखी यानी शीतलाष्टमी और 14 को सत्तू संक्रांति यानी सतुआनी है। इस दिन मेष राशि में सूर्य देव के प्रवेश होने से साथ ही दोपहर बाद करीब तीन बजे से खरमास समाप्त हो जाएगा। आचार्य सुजीत शास्त्री (मिट्ठू बाबा) ने बताया कि उसके बाद कुल देवताओं की पूजा की जा सकती है। उस दिन आटा ,सत्तू , आम्रफल के साथ शीतल पेयजल, पंखा का दान करना ज्यादा पुण्य फलदायक होता है। फसलों के पकने का यह उल्लास सिर्फ पंजाब और हरियाणा में ही नहीं दिखाई देता बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। बंगाल में पैला यानी पीला वैशाख तो दक्षिण में बिशु के नाम से मनाते हैं। केरल तमिलनाडु,असम आदि राज्यों में बिहू के नाम से मनाया जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी इस दिन मेंलो का आयोजन किया जाता है। पंडित सूरज शास्त्री ने बताया कि साल में दो बार खरमास होता है। 14 अप्रैल को खरमास खत्म हो रहा है ,लेकिन गुरु के अस्त होने के कारण अभी मांगलिक कार्य नहीं होंगे। 2 मई से शुरू होंगे विवाह संबंधी मांगलिक कार्य।
*विवाह मुहूर्त* :-
मई-2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,15, 16,20,21,26,27,28,29,30
जून-1,5,6,11,12,16,22,23,25, 26,28
नवंबर-23,24,28,29
दिसंबर-3,4,5,6,7,9,13,14,15 *तृतीया तिथि से भगवान बद्रीनाथ की शुरू होगी यात्रा* मिट्ठू बाबा ने बताया कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से भगवान बद्रीनाथ यात्रा की शुरुआत होगी। पद्म पुराण में बैसाखी के दिन स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। सूर्य के मेष राशि में परिवर्तन करने यानि मेष संक्रांति होने के कारण यह ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है। इस मास का एक नाम मधुमास भी है। मान्यता है कि इस दिन अपने पितरों को तर्पण कर उनके निमित्त यथाशक्ति दान करना चाहिए।