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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जयंती के अवसर पर उनकी अमर कृति ‘रश्मिरथी’ का नाट्य-मंचन देख भावविभोर हुए मुजफ्फरपुर के कलाप्रेमी दर्शक

मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। स्वराज्य-पर्व में आयोजित गणपति-उत्सव में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती के अवसर पर उनकी अमर कृति ‘रश्मिरथी’ का नाट्य-मंचन मुम्बई से आये कलाकारों द्वारा विश्वविख्यात रंगकर्मी श्री मुजीब खान के निर्देशन में किया गया। महाभारत की पृष्ठभूमि में कर्ण के जटिल चरित्र को केन्द्र में रख कर राष्ट्रकवि दिनकर द्वारा रचित काव्य-कृति रश्मिरथी का नाट्य-मंचन देख दर्शक अभिभूत होते रहे और दृश्यों के घात-प्रतिघात के बीच कर्ण के प्रत्येक संवाद पर पंडाल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती ही रही।
राष्ट्रकवि दिनकर ने रश्मिरथी में कर्ण के चरित्र के सभी पक्षों का चित्रण किया है। दिनकर जी ने कर्ण को महाभारतीय कथानक से ऊपर उठाकर उसे नैतिकता और विश्वसनीयता की नई भूमि पर खड़ा करके गौरव से विभूषित किया है। रश्मिरथी में दिनकर जी ने सभी सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को नये सिरे से परखा है। महाभारत की कथा से भिन्न रश्मिरथी में कवि ने कर्ण को नायक बनाया है, जबकि अर्जुन वहां एक गौणपात्र है।
नाट्य प्रस्तुति को देखते हुए प्रत्येक दर्शक का इस सत्य से साक्षात्कार होता है कि ‘रश्मिरथी’ के बहाने दिनकर जी ने सामाजिक न्याय की दृष्टि से कर्ण के चरित्र की पुनर्व्याख्या की है। मातृत्ववंचित कर्ण को रश्मिरथी में जो स्नेह दिनकर जी ने दिया है वैसा स्नेह अर्जुन आदि अपने पुत्रों के मोह से बंधी उसकी मां भी उसे नहीं दे सकी थी। राष्ट्रकवि ने कर्ण की पहचान का आधार जाति संबंध को बनाया है, जिसकी परिणति के तौर पर वे कर्ण की अपमानभरी त्रासद ज़िन्दगी को देखते हैं। रश्मिरथी में कर्ण को सामान्य मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित करने में कवि दिनकर को अभूतपूर्व सफलता मिली है। कर्ण सभ्य है। स्त्री और मित्रता का सम्मान करता है। संवेदनशील और उदार है। कर्ण के मानवता, दानवीरता, उदारता, मित्रता, संवेदनशीलता आदि गुणों की आज भी महत्ता है। कर्ण के अनुभव अन्य पात्रों के अनुभवों से भिन्न हैं। पात्रों में अनुभवों की भिन्नता स्वाभाविक चीज है। अस्वाभाविक है इस भिन्नता को छिपाना। जाति, धर्म, वैभव आदि को लेकर कर्ण की भिन्न राय है। वह परंपरागत सामाजिकता का निषेध करता है। वह अस्मिता संघर्ष के जरिए जहां एक ओर अपनी पहचान बदलता है, वहीं दूसरी ओर अपनी आर्थिक अवस्था का अतिक्रमण भी करता है। कर्ण अवैध संतान से क्रमशः सूतपुत्र, वीर, राजा और कौरव सेनापति बना।
दिनकर जी की रश्मिरथी का कर्ण स्वनिर्मित और आत्मनिर्भर है। पुरुषार्थ उसकी संपदा है। पुरुषार्थ के बल पर वह भाग्य पर विजय हासिल करता है। वीरता के बल पर भाषा, संस्कृति और जाति की सीमाओं का अतिक्रमण करता है। कवि दिनकर दिखाते हैं कि कर्ण के पक्षधर और विरोधी दोनों में उसकी वीरता निर्विवाद है। वह कौरवों को एकजुट रखने में सफल रहता है। दिनकर जी ने कर्ण को महाभारत के अद्वितीय चरित्रों की कोटि में ला खड़ा किया है। दुर्योधन का पांडवों के साथ युद्ध का फैसला बहुत कुछ कर्ण के ऊपर ही निर्भर था। महाभारत को अर्थपूर्ण बनाने में कर्ण की निर्णायक भूमिका है। महाभारत में वीरों के वैभव का जो विराट रूप सामने आता है, उसकी धुरी है कर्ण। रश्मिरथी का कर्ण पितृसत्ता को चुनौती देता है और जाति व्यवस्था की अमानवीयता को उद्घाटित करता है। दलित, राजा, मर्द, वीर आदि सब रूपों का अतिक्रमण करते हुए वह ‘मित्रता’ ‘आत्मनिर्भरता’ और ‘प्रेम’ के प्रतीक रूप में सामने आता है।
रश्मिरथी की अत्यंत सादगी से भरी नाट्य-प्रस्तुति में निर्देशक श्री मुजीब खान ने राष्ट्रकवि दिनकर के मूल उद्देश्य की न सिर्फ रक्षा की है, बल्कि सशक्त अभिनेताओं और कुशल दृश्ययुक्तियों के माध्यम से कर्ण जैसे जटिल और महाकाव्यात्मक आयामों से भरे युगांतरकारी चरित्र को मंच पर चरितार्थ कर दिया है। नाट्य प्रस्तुति में कर्ण के विराट् और बहुआयामी चरित्र का सशक्त अभिनय प्रस्तुत कर अभिषेक मूलचंदानी ने दर्शकों के मानसपटल पर एक अमिट छाप छोड़ दी है। युधिष्ठिर और परशुराम की भूमिका में अशोक धामू, अर्जुन और इन्द्र की भूमिका में हरीश अग्रवाल, दुर्योधन और शल्य की भूमिका में हाशिम सैय्यद, कृष्ण की भूमिका में अकिल अल्वी, कुंती की भूमिका में सीमा रॉय और सूत्रधार की भूमिका में तेजस पारीक ने भी कर्ण के चरित्र को निखारने में अपना बेहतरीन योगदान दिया है।
रश्मिरथी की इस प्रस्तुति की वस्त्रभूषा अस्फिया खान की थी, और रूपसज्जा की ज़िम्मेदारी पटना से आये चर्चित रूपसज्जाकार जीतू ने निभाई। सह-संयोजक अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा ने बताया स्वराज्य-पर्व के अंतर्गत कल शाम मुम्बई की इसी टीम के द्वारा ‘लोकमान्य तिलक’ नाटक का मंचन किया जायेगा, जिसे देश भर में काफी सराहना मिल चुकी है।

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