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आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी के शिखर गीतकार हैं : संजय पंकज

मुजफ्फरपुर (वरुण कुमार)। निराला निकेतन की मासिक गोष्ठी महावाणी स्मरण में बरसती हुई घनी घटाओं के बीच जुटे साहित्यकार। अध्यक्षता सुरंगमा कला केंद्र की संस्थापिका कवयित्री और लोक गायिका डॉ पुष्पा प्रसाद ने की। सृजन गवाक्ष के संपादक कवि विजय शंकर मिश्र ने विषय केंद्रित वक्तव्य दिया।
बेला पत्रिका की ओर से आयोजित निराला निकेतन की मासिक गोष्ठी महावाणी स्मरण में अपने अध्यक्षीय संबोधन से पहले डॉ पुष्पा प्रसाद ने आचार्यश्री के गीत – ‘जीवन भी मिला प्यार भी क्या और चाहिए/ सुर भी मिला सितार भी क्या और चाहिए’ सुना कर बारिश और ठंड के वातावरण में भी स्वर की मिठास से गर्मी और ऊर्जा को भर दिया। डॉ पुष्पा प्रसाद ने कहा कि आचार्य जी बड़े कवि तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। उनकी सुरीली आवाज का जादू सबके सिर पर चढ़कर बोलता था। उनके लगभग सारे गीत विभिन्न राग रागिनियों में उनके द्वारा भी प्रस्तुत हुए हैं और आज भी गीत संगीत की वह धरोहर है।
बेला पत्रिका के संपादक और महावाणी स्मरण के संकल्पक कवि गीतकार संजय पंकज ने ‘जानकीवल्लभ शास्त्री की गीतधर्मिता’ विषय पर ऑनलाइन बोलते हुए कहा कि गीत संगीत की पारंपरिक कसौटी पर शत प्रतिशत खरे और श्रेष्ठ गीतों का सृजन करने वाले आचार्यश्री ने नए-नए युगानुरूप प्रयोग भी खूब किए हैं। शास्त्री जी हिंदी के शिखर गीतकार के रूप में आज भी समादृत हैं। उनके गीत हृदय और आत्मा की भाषा में बोलते हैं।
सृजन गवाक्ष के संपादक और गीतकार डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि आचार्य जी मनुष्यता के गायक हैं। उनका व्यक्तित्व करुणावान और मधुमय था। उनके गीत बड़े ही जीवंत और प्राणवान हैं तभी तो मर्म का स्पर्श करते हैं। कवि आलोक कुमार अभिषेक ने कहा कि आचार्य जी के स्मारक पर आने से प्रेरणा मिलती है। हम उन्हें अपनी रचनाओं से प्रणाम निवेदित करते हैं। आचार्य जी की नातिन डॉ रश्मि मिश्रा ने कई संस्मरण सुनाकर अपनी श्रद्धा निवेदित किया और कहा कि हम सब उन्हें कभी नहीं भूल सकते हैं। लगता है कि वे निराला निकेतन के कण कण में विराजमान हैं। नागरिक मोर्चा के संस्थापक और समाजसेवी मोहन प्रसाद ने संचालन करते हुए कहा कि  हिंदी जगत में एक ही साहित्य तीर्थ है और वह है निराला निकेतन। उद्गार व्यक्त करने वालों में सतीश, महेंद्र, नीरज आदि की उपस्थिति रही।
प्रतिकूल मौसम के बावजूद आचार्यश्री को प्रणाम करने के लिए आए साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों को धन्यवाद देते हुए आचार्य जी की पुत्री शैलबाला मिश्र ने आचार्य जी के प्रिय गीत – जिन्होंने हो तुझे देखा नयन वे और होते हैं/ कि बनते वंदना के छंद क्षण वे और होते हैं’ -सुनाकर अभिभूत कर दिया।

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