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सृष्टि का चैतन्य रूप ही कृष्ण है:- आचार्य सुजीत शास्त्री

मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। कृष्ण का अर्थ है, जो आकर्षित करता है। इसलिए सारी सृष्टि ही कृष्ण की और आकर्षित होती है। उक्त बातें आचार्य सुजीत शास्त्री (मिठ्ठू बाबा) ने कही। उन्होंने कहा कि सृष्टि के सभी रूप कृष्ण में समाए हुए हैं, क्योंकि कृष्णा सोलह कलाओं से युक्त पूर्ण पुरुष है। एक बार जो इन्हें देख लेता है, इनमें दिल लगा लेता है, वह इनका हो जाता है। जीव और ईश्वर दोनों ही रूपों में यह हमारे साथ हैं। यह बोध होते ही ज्ञान होने लगता है कि सारी सृष्टि ही कृष्णमय है। श्री कृष्णाके नाम का अर्थ है चैतन्य। कृष्ण मतलब जो आकर्षित करता है। कृष्ण का अर्थ है चुंबकीय शक्ति रखना वाला। प्यारे मनमोहन श्री कृष्णा को जो कोई एक बार देख ले तो फिर वह बस उन्हीं का हो जाता है। फिर वह उन्हें कभी छोड़ नहीं सकता। वेदांत कहता है कि ब्रह्मा इस सृष्टि का अभिन्न, निमित उत्पादन कारण है। जैसे मिट्टी घड़े का उत्पादन कारण है। निमित्त मतलब जैसे घड़ा बनाने के लिए लगने वाले साधन- कुम्हार, चक्का, डंडा, इत्यादि। मिट्टी घड़े का उपादान कारण भी है और निमित्त कारण भी है। ऐसे ही परमेश्वर इस जगत का उपादान कारण और निमित्त कारण है। मिट्ठू बाबा ने कहा श्री कृष्ण को हम सोलह कला संपूर्ण कहते हैं। उनके नेत्र ऐसे हैं, जैसे कमल की पंखुड़ियां। उनके पूरे शरीर में से जैसे नीले रंग का प्रकाश निकल रहा है।

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