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सृष्टि के साथ एकाकार हो जाना ही राम है: आचार्य सुजीत शास्त्री

मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। राम की सरलता को पाना आसान नहीं है। जब तक हम अपने मन को साध कर सृष्टि के साथ एकाकार नहीं होते, तब तक राम हमसे दूर होते हैं। लेकिन जैसे ही हमारा मन सृष्टि के साथ एकाकार होता है हमारे भीतर राम जन्म लेने लगते हैं।
आचार्य सुजीत शास्त्री (मिट्ठू बाबा) ने बताया कि”रा” का अर्थ उजाला और चमक है और “म”का अर्थ है मैं। राम उस प्रकाश के प्रतीक है ,जो मेरे भीतर हृदय में विद्यमान हैं। राम की उनकी सत्यता के लिए आराधना की जाती है। उन्हें उच्च मानव व्यवहार के प्रतीक तथा एक आदर्श राजा के रूप में देखा जाता है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था , ‘आप मेरा सब कुछ ले लें, फिर भी मैं जीवित रह सकता हूं। किंतु यदि आप राम को मुझसे दूर ले जाएंगे तो मेरा अस्तित्व शेष नहीं रहेगा’।
भगवान राम के माता- पिता दशरथ और कौशल्या थे। संस्कृत में दशरथ ‘दस रथ वाले’ के रूप में जाना जाता है। यह पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कामेंद्रियों का प्रतीक है। संस्कृत में कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’। जब इन ज्ञानेंद्रियों और कामेंद्रियों को कुशलतापूर्वक प्रयोग में लाया जाता है, तब भीतर तेज उत्पन्न होता है। अयोध्या का अर्थ है वह स्थान जहां ‘कोई युद्ध नहीं हो सकता’ यही वह स्थान है जहां राम का जन्म हुआ था।
संपूर्ण रामायण हमारे अंदर घटित हो रही है। राम हमारे भीतर आत्मा के रूप में है। लक्ष्मण मन की जागरूकता है। रावण अहंकार का प्रतीक है और सीता बुद्धिस्वरूपिणी हैं। एक स्वर्ण मृग ने सीता का ध्यान आकर्षित किया था। जिस तरह जल का स्वभाव है बहना, उसी तरह चंचलता मन का स्वभाव है। हमारा मन विशेष वस्तुओं में आसक्त हो जाता है। यह अहंकार द्वारा अपहृत कर लिया जाता है और आत्मा से विलग हो जाता है। हनुमान का दूसरा नाम पवन पुत्र है। हनुमान सीता को वापस लाने में राम की सहायता करते हैं। अत: शवास (हनुमान) और जागरूकता (लक्ष्मण) द्वारा बुद्धि (सीता) का आत्मा(राम) के साथ मिलन घटता है। प्राणायाम क्या है? यह सचेतन श्वास है ।यदि कोई सीधे-सीधे मन को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं है, तो वह इसे श्वास की शक्ति से नियंत्रित कर सकता है। मन एक पतंग की तरह है और श्वास इसकी डोर है। अगर आप श्वास पर ध्यान दे सकते हैं तो आपको अवसाद दूर करने की दवाई लेने की जरूरत नहीं है।
सृष्टि पांच तत्वों और दस इंद्रियों से बनी है। दोनों में क्या अधिक महत्वपूर्ण है? इंद्रियों और वस्तुओं की तुलना में इंद्रियां अधिक महत्वपूर्ण है। आपकी आंखें टेलीविजन से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। संगीत या ध्वनि से अधिक महत्वपूर्ण कान है। बहुतों को इसका एहसास नहीं है। वे सोचते हैं कि इंद्रियों और वस्तुओं में इंद्रियों से अधिक महत्वपूर्ण वस्तुएं हैं। वे जानते हैं कि ज्यादा टीवी देखना आंखों के लिए अच्छा नहीं है ,फिर भी वह अपनी आंखों की परवाह नहीं करते और टेलीविजन देखते रहते हैं। वे जानते हैं कि उनका पाचन तंत्र बहुत अधिक भोजन ग्रहण नहीं कर सकता, फिर भी वे स्वाद के आकर्षण में अधिक खा लेते हैं। मन इंद्रियों से भी अधिक महत्वपूर्ण है। जब मन पर ध्यान नहीं दिया जाता है और केवल इंद्रियों को महत्व दिया जाता है, तो यह अवसाद का कारण बन सकता है। जब वस्तुओं के लिए आप की लालसा मन से अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी, तो आपको प्रसन्न रहने में कठिनाई होगी। मन राग- द्वेष पर जीवित रहता है ।उसे या तो ‘कुछ’ चाहिए या ‘कुछ नहीं’ चाहिए या फिर ‘और’ चाहिए।
तो मन के इस युद्ध को कैसे रोका जाए? ध्यान और श्वास की विधि इसका उपाय है। इन के माध्यम से लोग आनंद का अनुभव कर सकते हैं। आनंद में होना पूर्ण विश्राम है। ध्यान और स्वास्थ्य की विधियां स्वास्थ्य को बनाए रखने के साथ-साथ ध्यान और स्वास्थ्य की विधियां स्वास्थ्य को बनाए रखने के साथ-साथ मन, बुद्धि ,भावनाओं और आप के अंतर की गहराई को शुद्ध करने में भी मदद करते हैं। यह अवचेतन का वह स्थान है ,जो आपके जीवन को नियंत्रित करता है। यह वह स्थान है जहां से सभी विचार और भावनाएं निकलती हैं, जिनके लिए आप मात्र एक कठपुतली के समान हैं। जब आपकी भावनाएं प्रबल हो जाती है, तो आप उनका शिकार हो जाते हैं। यदि आपके विचारों का कर्म पूर्वाग्रह से ग्रसित है, तो आप पूर्वाग्रही तरीके से व्यवहार करते हैं।
हम शायद ही कभी अपनी भावनाओं को देखने के लिए समय निकालते हैं। शायद ही स्वयं के विचारों के पैटर्न को देखते हैं, जो अंदर घटित हो रहे हैं हम सोचने से पहले ही कार्य में लग जाते हैं। हम अपनी भावनाओं का समाधान करने से पहले कार्य करने लगते हैं। आंतरिक नियम द्वारपाल की तरह है, लेकिन भावनाएं घर की स्वामिनी हैं। इसलिए जब स्वामिनी अंदर प्रवेश करती है तो द्वारपाल बस रास्ता दे देता है। ठीक है ऐसा ही होता है।
जब मन स्थिर होता है तभी ‘पूर्ण विश्राम’ या ‘ध्यान’ होता है। अपने घर निज स्रोत पर लौटा हुआ मन ही ध्यान है। मन जो अ-मन हो जाता है वह ध्यान है, वह ध्यान है। वर्तमान क्षण में जीने के लिए मन को थोड़ा प्रशिक्षित करें। तनाव अवसाद और चिंता को छोड़ें, जो आप व्यर्थ में हो रहे हैं। जब मन की दौड़ रुक जाती है, तो आप पूर्ण विश्राम और पूर्ण सजगता का अनुभव करते हैं। उस अवस्था में, सभी दस इंद्रियां आपका सहयोग करती है और आप सृष्टि के साथ एक हो जाते हैं तत्पश्चात राम का जन्म होता है।

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