मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। डीएवी पब्लिक स्कूल खबड़ा,मुजफ्फरपुर के प्रांगण मेंशि क्षकों एवं बच्चों नेदेश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जन्मदि वस को मेधा दि वस के रूप में मनाया। इस अवसर पर शि क्षकों तथा बच्चों ने बारी बारी से देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए देश के लिए उनके योगदान को याद किया। मौके पर उपस्थित बच्चों को संबोधित करते हुए विद्यालय के प्राचार्य मनोज कुमार झा ने कहा कि सादा जीवन, उच्च विचार के अपने सिद्धांत को अपनाने वाले डा. राजेन्द्र प्रसाद के जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। राजेंद्र प्रसाद एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम
स्थान प्राप्त किया और उन्हें 30 रूपए मासिक छात्रवृत्ति दिया गया। वर्ष 1902 में उन्होंने प्रसिद्ध कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। बाद में उन्होंने विज्ञान से हटकर कला के क्षेत्र में एमए और कानून में मास्टर्स की शिक्षा पूरी की। भारतीय राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को काफी प्रभावित किया। जब गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में तथ्य खोजनेके मिशन पर थे। तब उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को स्वयंसेवकों के साथ चंपारण आने के लिए कहा। गांधीजी ने जो समर्पण, विश्वास और साहस का प्रदर्शन किया। उससे डॉ. राजेंद्र प्रसाद काफी प्रभावि त हुए। गांधीजी के प्रभाव से डॉ. राजेंद्र प्रसाद का दृष्टि कोण ही बदल गया।
उन्होंने अपने जीवन को साधारण बनाने के लिए अपने सेवकों की संख्या कम कर दी। उन्होंने अपने दैनिक कामकाज जैसे झाड़ू लगाना, बर्तन साफ़ करना खुद शुरू कर दिया। जिसे वह पहले दूसरों से करवाते थे। गांधीजी के संपर्क मेंआने के बाद वह आज़ादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए। पढ़ाई लिखाई में उम्दा होने की वजह से एक बार तो उनकी परीक्षा आंसर शीट को देखकर, एक बार तो एग्जामिनर ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘The Examinee is better than Examiner’। ऐसा एग्जामिनर ने राजेंद्र बाबूकी खूबसूरत लिखावट को देखकर कहा था। डा.राजेन्द्र प्रसाद उच्च कोटि के विद्वान के साथ- साथ सादगी के प्रति मूर्ति थे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का भारत के संविधान निर्माण में अहम योगदान था। सभी युवाओं को उनके विचारों को अपनना चाहिए। देश के लिए उनके द्वारा दिए गए योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आगे उन्होंने कहा कि डा. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से थे और उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताये।
इस अवसर पर विद्यालय के बच्चों ने विस्तृत रूप से उनकी जीवनी से जुड़ी कुछ यादों को नाटक के जरिए प्रस्तुत किया। बच्चों के बीच में निबंध वाद-विवाद एवं चित्रकारी प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया और प्रतियोगिता में विजय हुए बच्चों के बीच पुरस्कारों तथा प्रशस्ति पत्र का भी किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय के कोऑर्डिनेटर रमण मिश्रा, अमित शरण, सुनील कुमार त्यागी, हर्षवर्धन,लवली कुमारी, रश्मि कुमारी, कल्पना कुमारी, रंजना वर्मा , नरेंद्र झा,किरण कुमारी,रंजना तिवारी,खुशबू कुमारी सहित सभी शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारी उपस्थित थे।