–बिहार केसरी टॉक के अंतर्गत हुआ श्रीबाबू और सांस्कृतिक बिहार पर गंभीर विमर्श
मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह की जयंती की पूर्व संध्या पर मिशन भारती के तत्वावधान में आमगोला स्थित शुभानंदी में श्रीबाबू और सांस्कृतिक बिहार पर अध्यक्षीय संबोधन में विस्तार से बोलते हुए साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने कहा कि बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह केवल एक इमानदार, कर्मठ और मजबूत राजनेता ही नहीं थे, वे दूरदर्शी महान शिक्षाविद भी थे। समरस समाज की स्थापना और समग्र विकास के लिए वे शिक्षा को अनिवार्य मानते थे। उन्होंने शिक्षण संस्थानों की बड़े पैमाने पर पूरे राज्य में स्थापना की। पुस्तकालय और वाचनालय खोले गए। अनेकानेक सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों का संचालन शुरू करवाया। कला, साहित्य, संगीत तथा अन्य सांस्कृतिक विषयों के गांव से लेकर शहर तक प्रकोष्ठ खोले गए। विभिन्न विषयों के गंभीर अध्येता श्रीबाबू ने ज्ञान को सबके लिए अनिवार्य माना और सरकार के स्तर पर उसे व्यापक किया।
डॉ पंकज ने बिहार केसरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बोलते हुए आगे कहा कि श्री बाबू केवल संस्कृति प्रेमी ही नहीं थे वह सांस्कृतिक पुरुष भी थे। उनके जीवन और अवदान पर केंद्रित पहला अभिनंदन ग्रंथ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने संपादित किया था। श्री बाबू जानते-समझते थे कि व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की पहचान शिक्षा-संस्कृति से होती है। संस्कृति मनुष्य को सही अर्थ में मनुष्य बनाती है। डॉ श्रीकृष्ण सिंह एक संवेदनशील राजनेता थे। वे चिंतक और विचारक थे। सांस्कृतिक बिहार को समृद्ध करते हुए उन्होंने राष्ट्र को गौरवशाली बनाने में अविस्मरणीय योगदान दिया।।
समाजसेवी मुकेश त्रिपाठी ने कहा कि श्रीबाबू को जब कोई भी सम्मानित करते हुए धन देने की बात करता था तो वे उसे शिक्षण संस्थान खोलने के लिए प्रेरित करते थे। वे मजबूत बिहार के निर्माण के लिए हर समय सोचते रहते थे। अपनी कर्मठता और परिश्रम के बल पर केंद्र सरकार से भी बिहार के विकास के लिए सहयोग लेते थे। उनके विचार भारतीय राजनीति के लिए भी प्रेरक हैं। विषय प्रस्तावना में अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा ने कहा कि बिहार केसरी टॉक श्री बाबू के व्यक्तित्व और कृतित्व से युवा पीढ़ी को परिचित कराने का एक अभियान है। आज अगर बिहार विकसित और समृद्ध है तो इसके पीछे श्रीबाबू का त्याग उनकी ईमानदारी और कर्मठता है। बिहार के नेताओं को उनके जीवन को आदर्श रूप में स्वीकारते हुए उनके विचारों का अनुसरण करना चाहिए। जन जन के प्रिय श्रीबाबू को भारत रत्न से सम्मानित करके केंद्र सरकार को अपनी भूल का जल्दी से जल्दी परिमार्जन कर लेना चाहिए।
भावोद्गार प्रकट करने वालों में कुमार विभूति, ब्रज भूषण शर्मा, सुनील साह, राजीव रंजन, चैतन्य चेतन, अनुराग आनंद, वंदिनी, मृणाल, प्रणव चौधरी, कामाख्या नारायण सिंह आदि महत्वपूर्ण थे।
आयोजन का शुभारंभ श्री बाबू के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुआ।
स्वागत भाषण प्रेम भूषण, विषय प्रस्तावना कुमार विभूति तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद आजाद ने किया।