मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित पुत्रिका व्रत मनाया जाएगा। इसे जिउतिया के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह 18 सितंबर रविवार को पड़ रहा है। इस दिन महिलाएं संतान की दीर्घायु व मंगल कामना को लेकर 24 घंटे का उपवास रखेंगी। वही खरजीउतिया करने वाली महिलाएं दिनभर उपवास रखकर शाम को तारा देखने के बाद अन्न- जल ग्रहण करेंगी।
महिलाएं पितराइनों को झिगुनी के पत्ते पर खरी व तेल रखकर अर्पण करेंगी। महिलाएं जिउतिया के भोर में चूल्हो, सियार व पितर- पितराइन को व्रती अपने कुल की परंपरा के अनुसार नैवेद्य अर्पण करती है। शाम को नहा- धोकर जीमूत वाहन भगवान की पूजा-अर्चना करेंगी। गले में जितिया की माला भी धारण करेंगी। आचार्य सुजीत शास्त्री (मिट्ठू बाबा) बताते हैं कि वंश वृद्धि व संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं इस व्रत को करती है। इससे संतान की ओर आने वाली विपदा दूर हो जाती है।
मिट्ठू बाबा के अनुसार यह व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। जब भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए अपने सभी पुण्य कर्मों से पुनर्जीवित किया था। तब से ही स्त्रियां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती है। नहाए खाए के दिन भोर में दही और चूड़ा खाती है। इस में उदय अष्टमी को व्रत करना चाहिए ।सप्तमी युक्त अष्टमी का त्याग करके अष्टमी युक्त नवमी तिथि को व्रत करना चाहिए और अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।