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प्रेमचंद में सेवा और त्याग की प्रधानता है: संजय पंकज

मुजफ्फरपुर (जनमन भारत संवाददाता)। ” भारतीय लोक जीवन के अमर चितेरे प्रेमचंद हिंदी भाषा साहित्य के गौरव हैं। मनोरंजन में फंसे हुए कथा लोक को उन्होंने जीवन के यथार्थ से आलोकित किया। उनका साहित्य मूल्य, सद्भाव और मनुष्यता की यात्रा है। विश्व के श्रेष्ठ कथाकारों में प्रेमचंद अगली पंक्ति में अपनी श्रेष्ठता के साथ आज भी हैं। उनके कथा साहित्य में सेवा और त्याग की प्रधानता है। ” ये बातें आमगोला के शुभानंदी में नवसंचेतन के तत्वावधान में आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह में बोलते हुए साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने कही। वर्तमान संदर्भ में प्रेमचंद विषयक विमर्श में विस्तार से बोलते हुए डॉ पंकज ने आगे कहा कि सामाजिक समरसता के पक्षधर प्रेमचंद ने गांव, किसान और मजदूर के संघर्ष को बड़ी ही गंभीरता से चित्रित है। विसंगतियों को उजागर करते हुए उन्होंने कारणों की जड़ पर प्रहार किया है। प्रेमचंद ने सिर्फ प्रश्न ही नहीं उठाया है समाधान की दिशा भी दिखाई है। सरलता, सादगी और सच्चाई प्रेमचंद की सबसे बड़ी पूंजी है। सरल भाषा में बड़े सवालों और विचारों को उजागर करना उनका विशिष्ट कौशल है। कवि डॉ कुमार विरल ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य शोषण के विरोध में पुरजोर आवाज उठाता है। जन मूल्यों के आग्रही प्रेमचंद ने शोषित समाज के पक्ष में विपुल कथा साहित्य का सृजन किया है। कवि कुमार राहुल ने कहा कि प्रेमचंद के कथा के पात्र आज भी अपने जीवन संघर्ष के साथ खड़े हैं। सामाजिक बदलाव की आज भी छटपटाहट है। युवा कवि श्रवण कुमार ने कहा कि प्रेमचंद उपनिवेशवाद के खिलाफ सदा रहे। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत का भी विरोध किया। निशा कुमारी ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य हर वर्ग को प्रभावित करता है। उन्होंने कल्पना से नहीं यथार्थ से कथा का सृजन किया है। आयोजन में अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा, सुमन वृक्ष, अभिषेक राज, रजनी रंजन, दीनबंधु महाजन आदि कई लोग थे जो निर्णय अपने भाव प्रकट किए। स्वागत संबोधन में संचालक चैतन्य चेतन ने कहा कि प्रेमचंद की भाषा से सीखने की जरूरत है। उनके लेखन में युवा पीढ़ी को संस्कारित करने की क्षमता है। उन्होंने लेखकीय दायित्व का पूरा निर्वहन किया। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए नवचेतन के सचिव युवा रंगकर्मी प्रमोद आजाद ने कहा कि प्रेमचंद की सारी कहानियों की नाट्य प्रस्तुति की जा सकती है। समाज को जागृत करने की शक्ति प्रेमचंद के लेखन में है।

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